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भाषा

bhasha

अतुल

अन्य

अन्य

अतुल

भाषा

अतुल

और अधिकअतुल

     

    एक 

    भाषा के लिए मैं
    और मेरे लिए भाषा अपंग है
    जैसा इस मुहावरे की समस्या है।

    दो

    मैं भाषा को क़रीब लाने की कोशिश करता हूँ
    भाषा मुझे मुझसे दूर जाने को कहती है
    दोनों ही बचा ले जाते हैं अपने हिस्से की ऊर्जा
    और ख़ामोशी को चलने देते हैं थोड़ी देर।

    तीन

    अपने को सटीक रखकर 
    हल्का चलने की कोशिश करता हूँ
    भाषा ले आती है अर्थ के भारी क़दमों से उठता बवंडर
    एक दूसरे से फेर लेते है मुँह 
    बैठ जाते हैं हम
    बवंडर चलता रहता है 
    शाम देर तक

    चार

    सर्द बदन में जैसे जकड़े होते हैं 
    नासिक्य व्यंजनों के उच्चारण
    भाषा जकड़ लेती है विचारों की उतनी गति
    मेरे कसने के किसी भी प्रयोजन को धोखा देती है
    छल से बचा ले जाती है अपनी सत्ता का भ्रम
    अपने छिछले मौन को एब्स्ट्रैक्ट आर्ट की भव्यता में 
    आरोपित करते हुए
    ठगे प्रेमी की तरह मैं बुद्धिजीविता के भ्रम का डिज़ाइन खींचता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अतुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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