भले घरों की औरतें

bhale gharon ki aurten

भावना झा

भावना झा

भले घरों की औरतें

भावना झा

और अधिकभावना झा

    ज़ुबान पर उनके नपे-तुले

    कुछ शब्द हाज़िर रहते हैं

    छटाँक भर कम

    रत्ती भर ज़्यादा

    आँखें दिखाई जाने

    वाली दृश्यों की ही अभ्यस्त थी

    और कान आदतन सुनते ही रहते

    बग़ैर किसी प्रतिक्रिया दिए

    गति नियम के सिद्धांत को

    यहाँ ख़ारिज किया जाता है!

    कुछ अलग दृष्टिगत होते ही

    उन्हें दृष्टिदोष की समस्या घेर लेती थी

    करवटों में रात को महसूसते हुए

    कोमल स्पर्श की आड़ में

    छिपी कठोरता

    सुबह चादर झटकने से ज़मीन पर

    धप्प की आवाज़ से गिरते हुए

    चेहरे पर घिरता अज़ाब

    एक तिक्त मुस्कान संग

    विस्थापित किया जाता

    जिन कलाओं में स्त्रियों को निपुण

    कहा जाता वो उन सबसे बहिष्कृत थीं

    टटोलने को फिर भी छेड़ दिया जाता

    जटिल कोई प्रेम प्रसंग, रिश्तों के उलझे समीकरण

    गले को अवरूद्ध करता वो नाम

    इससे पहले

    उठ जातीं हैं पानी का गिलास थामने

    बाज़ दफ़ा उसे भी

    त्रिया चरित्र का हिस्सा माना जाता

    पनीली आँखों से एक रास्ता

    किसी तलघर को जाता

    जहाँ उतर बग़ैर किसी

    अनुताप के

    गाहे-बगाहे गले

    लगना स्मृतियों के

    ना बिसरने की कवायद थीं!

    हाँ कभी-कभार दिख जातीं थी

    कायदे से चलते

    एक आध क़दम बाहर निकालते

    देहरी से

    भले घर की लगती है आवाज़ें टेरतीं थीं

    पीछे से सुनते ही जिसे

    कलाई पर बंधी घड़ी की टिक-टिक शायद इशारे कर

    क़दमों की गति बढ़ा देती थीं

    भले घरों की औरतें आवाज़ों पर

    नहीं मुड़ती उन्हें सिखाया गया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : भावना झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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