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भइया कोटेदार हुइगा

bhaiya kotedar huiga

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

भइया कोटेदार हुइगा

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    समझौ हमरे पूरे घर का है उद्धार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    खड़ा रहै परिधानी महियाँ पइसा खूब बहाइसि

    घर का सगरा मालु बिकि गवा परधानिउ ना पाइसि

    परधानउ से साँठ-गाँठ करि कोटा जस तस लावा

    कामधेनु गइया अस घर मा सब सुख हइ लइ आवा

    अन्नदाता जइसन अब तौ हइ अधिकार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    दुइ-दुइ महिना तेलु बाँटइ बीपिउएल सबु खाइसि

    अन्त्योदय आधइ बाटिसि जब बीस दाइँ दउराइसि

    पी एल का नाउइ नाई सक्कर गायब सारी

    फादिल कार्ड बने घर रक्खे जानति हैं अधिकारी

    बचे खुचेम परधानउ साझीदार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    सबते कहै बचति नाई कुछ बचति हैं खाली ब्वारा

    कुछु जलवेदारन के पहुँचै पीछेति पिपिया झ्वारा

    नक्सेबाजी रोब झारिके कुछु फोकट मा पावै

    कुछु तौ डटे दुआरेइ बैंठे दारु मीट उड़ावै

    सबका खुस राखति हइ एतना समझदार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    बाँटि खाइ का भाई-भाई जइसे सब लवकुस हैं

    जनता छोंड़ि खुसी परधानउ अधिकारिउ खुस हैं

    चलैं जीप ते भइया हमरे बन्दूखउ लइ आये

    खेतु खरीदिन औरु दुमँजिल पूराघरु बनवाये

    देखउ साल भरे मा भइया जिमीदार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    सक्कर तेलु भाड़ मा डारउ बिन गेंहू का सेकतीं

    तुम उनका कुछु देखे होतिउ तउ वइ तुमका देखतीं

    बड़ी जाँच जब आइ गयी तब ऐसी वैसी भागे

    पहुँचे जेल मगर तबहूँ वइ गिने जाति हइँ आगे

    हुवनउ तिकड़म ताली करिके लम्बरदार हुइ गवा

    जबते हमरा भइया अबकी कोटेदार हुइ गवा

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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