अच्छाई
हम सब जानते हैं
कि हमारे भीतर अच्छाई का समंदर लहरा रहा है
पर क्या करें
क्या करें कि वह किसी को दिखाई नहीं देता
हम बच्चे को दुलारना चाहते हैं
पर उसी वक़्त वह ऐसा कुछ कर बैठता है
कि उसे पीट देते हैं
खटती हुई बीवी से हमदर्दी के दौरे में
हम कहीं बाहर घूम आने की पेशकश करने ही वाले होते हैं
कि पता नहीं किस बात पर चख-चख हो जाती है
माँ-बाप के लिए तो हमारे दिल में
कृतज्ञ अनुराग की ज़बर्दस्त हिलोरें उठती ही रहती हैं
पर न जाने कौन क्या कह बैठता है
कि अक्सर खटपट हो जाती है
दोस्तों की तो बात ही मत पूछिए
जो सबसे अज़ीज़ है उसी से अबोला
हमारी अच्छाई अपना मन मसोस के रह जाती है
और ख़ुद के यूँ पोशीदा रह जाने पर अफ़सोस करती रहती है
वह हमें अक्सर एक अनिवार्य पछतावे की तरफ़ ले जाती है
जो कि एक ख़ालिस चीज़ है
जिसकी रगड़ से आत्मा चमकने लगती है
जिसमें हम अपना मुखड़ा देखते रहते हैं
जो वैसा हरगिज़ दिखाई नहीं देता
जैसा हम देखना चाहते रहे हैं
जिसका एक उप-पछतावा फिर होने लगता है
शायद हम अच्छाई के डंक के मारे हुए
उतने—अच्छे—नहीं क़िस्म के लोग हैं
शायद हमें इलाज से नहीं
इस रोग से ही
अपनी ताक़त खींचनी पड़ेगी
- पुस्तक : यक़ीन की आयतें (पृष्ठ 35)
- रचनाकार : आशुतोष दुबे
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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