बारिश मुझे बहुत पसंद है

barish mujhe bahut pasand hai

पल्लवी विनोद

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बारिश मुझे बहुत पसंद है

पल्लवी विनोद

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    प्रेम हर वर्जना तोड़कर, मुझे छूना चाहता है

    मेरे शरीर के हर रहस्य से परिचित कराता प्रेम

    देखना चाहता है मुझे भीगते हुए

    कि बारिश मुझे बहुत पसंद है,

    ये मुझसे ज़्यादा उसे पता है

    वो मंद से तार सप्तक के हर सुर छेड़ता है

    और मैं उसकी लय में गुनगुनाती हूँ

    हाँ प्रेम मुझे हर बार अचंभित करता है

    कि मेरे अंदर बचा जीवन आज भी उतना ही सुंदर है

    जैसे बारिश के बाद भीगी सुबह

    जैसे पहाड़ों पर खिली धूप

    जैसे मरुस्थल में मिला जलप्रपात

    पर जैसे मौसम रूठते हैं

    नदियाँ सूखती हैं

    पहाड़ दरकते हैं

    प्रेम भी गुज़रता है विभिन्न अवस्थाओं से

    सूखा, रूठा, दरका हुआ

    बस कभी ख़त्म नहीं होता

    वो फिर से बरसता है

    मुझे बताने को, कि बारिश मुझे बहुत पसंद है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी विनोद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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