बाक़ी निशाँ

baqi nishan

कुमार वीरेंद्र

कुमार वीरेंद्र

बाक़ी निशाँ

कुमार वीरेंद्र

और अधिककुमार वीरेंद्र

    अचानक एक माह बाद

    खोली के जिस कोने में बैठता हूँ लिखने-पढ़ने

    उसी की दीवाल पर लिखा हुआ मिला

    आई लव यू

    कौन लिख सकता है किसी नुकीली चीज़ से

    खरोंचते हुए इतने प्यार से

    मैंने तो लिखा नहीं

    पत्नी का भी कहना है क्या आई लव यू

    लिख-कह देने से संबंध में मिठास बढ़ जाती है

    टूटता-छूटता नहीं अमर हो जाता है वह

    अरे दोनों बेटियाँ भी तो इतनी छोटी हैं

    कि बी सी डी भी अभी नहीं जानतीं

    वर्ना टीवी के प्रभाव में उन्हें सोचा जा सकता था

    फिर तो एक दिन रसोईघर में लिखा हुआ मिला

    फिर खोली में वहाँ-वहाँ जहाँ आँखें जा सकती थीं उसकी

    जिसके लिए लिखने वाले ने लिखा

    होता है कितना कुछ सामने या आस-पास होता है

    जब तक नज़र नहीं जाती तब तक अनदेखा बना रहता है

    अनछुआ भी

    तब उन लोगों ने ही लिखा होगा

    जो हमसे पहले रहते थे या हो सकता है

    उनसे पहले रहने वालों ने या उनसे भी पहले रहने वालों ने

    या क्या जाने जिसकी खोली है उसी के किसी ने लिखा हो

    कि इस खोली की पुताई वर्षों से नहीं हुई है

    बनिया है खोली-मालिक

    चाहता है भड़ौत्री ही करवाएँ

    और पुताई के निमित्त दो-तीन सौ रुपए

    ख़र्च करने की अपनी हिम्मत नहीं होती

    तो क्या जितने भड़ौत्री आए

    सब हमारी ही तरह निकले

    हो सकता है कुछ ज़िद्दी हों

    कुछ झगड़ालू या कुछ को जहाँ रहे उससे जुड़ाव नहीं

    कि बनिया जैसे ही थे कुछ कि कुछ को आई लव यू के सिवा

    कुछ सूझता नहीं था

    कि कुछ सचमुच हमारी ही तरह थे

    इस आई लव यू ने

    कितना कुछ सोचने का समय दे दिया

    ताज्जुब है हमारे पास अचानक इतना समय कहाँ से गया

    हमने सुना है कि इस खोली में

    बहुत पहले रहने वाले एक जोड़े ने आत्महत्या की थी

    बहुत दिनों बाद इस खोली में भाड़े पर रहने वाले आए

    फिर आने लगे थे जैसे अब हम आए हैं

    मालिक ने खोली का

    कभी भी किसी के लिए एक या दो ग्यारह से

    ज़्यादा का एग्रीमेंट नहीं बनाया

    वह हर आने वाले से कहता है अगले साल से

    अब हमीं रहेंगे या बेचनी है बात हो रही है

    लेकिन वर्षों से उसका परिवार रहा ही उसने बेची खोली

    मैं जिस कोने में बैठता हूँ

    उसकी देह पर जबसे देखी हैं

    आई लव यू की खरोंचें

    बरबस वे खींच लेती हैं मेरी निगाह

    और कुछ देर के लिए कभी परेशान करती है यह बात

    कि कहीं ये उन बिंदास दीवानों के बाक़ी निशाँ तो नहीं

    जो इस खोली में रहते ख़ाली हुए और नहीं रहे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विलाप नहीं (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : कुमार वीरेंद्र
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2005

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