बदलते रंग

badalte rang

स्मृति प्रशा

स्मृति प्रशा

बदलते रंग

स्मृति प्रशा

और अधिकस्मृति प्रशा

    हर बार की तरह

    इस बार भी निराशा ही हाथ लगी

    तुमको पहचानने में

    हमारे बीच दूरियाँ इतनी बढ़ गई हैं

    कि आकाश और धरती का अंतर छोटा प्रतीत हो रहा है

    मुझे अब नीले और काले में अंतर नज़र नहीं आता

    और ही इंसानों में

    फूल से भरी टोकरियों को देखकर लगता है

    कोई समूचे संसार का दुःख भरकर ले जा रहा है

    किसी पर उड़ेलने के लिए

    जबकि तुम्हारे साथ होने पर

    ये मुझे चमकते हुए तारे लगते थे

    सारे रंग अपना आकार तेज़ी से बदल रहे हैं

    इतनी तेज़ी से

    कि मौसम को पीछे छोड़ने की होड़ में हैं

    इस प्रतिस्पर्धा से याद आया

    तुम्हें भी तो सफल बनकर दुनिया को पीछे छोड़ना था

    और हर बार अलग होकर मुझे दिलासा देना था

    कि मैं हमेशा तुम्हारे पास हूँ

    हमेशा रहने वाली चीज़

    हमारी होकर भी

    हमेशा हमारे साथ नहीं रहती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्मृति प्रशा
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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