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बचपन के दिन

bachpan ke din

राजेश राजभर

अन्य

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राजेश राजभर

बचपन के दिन

राजेश राजभर

और अधिकराजेश राजभर

    नहीं भूलता—चंचल बचपन

    झूलता है आँखों पर,

    रात उठाएँ आईं तन पर—

    दिन बाबा के काँधो पर..!

    विटप शाख चढ़ि करें उदंड

    काटि पतंग मन भरें आनंद,

    चिंता, रहित ‘बालपन’ वेला!

    खेल-खेल में बने तुरंग,

    अल्हड़पन की अलख अनोखी,

    मनमौजी पन—रुकता बहता—

    नहीं भूलता, चंचल बचपन...!

    टिस कहाँ थी—ऊँच-नीच की

    काले पीले-नीले मन की,

    भोलापन नित ‘निर्मल’ बचपन,

    मैल नहीं मन जाति पाति की,

    समानता की पगडँडी पर—

    पग-पग चलता,

    उठता गिरता,

    नहीं भूलता, चंचल बचपन...!

    धूल-फूल संग-हँसी ठहाके

    रुचिर मँडली—ईहा अनोखे

    कूद कबड्डी—गुल्ली डँडा,

    छुपन-छुपाई—दौड़ लगाते,

    हो निडर निरंकुश—

    उपवन फिरता, चौबारों पर—

    मिलता-जुलता,

    नहीं भूलता, चंचल बचपन...!

    क्षणिक बैर फिर खैर पूछना

    चंचल मन-सरल, सलोना

    साँझ सवेरे—लगते फेरे

    लोरी संग—उठना सोना,

    रिश्तों के रंगीन पटल पर—

    भिन्न-भिन्न भाव बदलता,

    नहीं भूलता, चंचल बचपन...!

    समय बहुत ‘निश्छल’ दिन था

    काम क्रोध मद लोभ नहीं था,

    टूटे सपने, निर्दयी अपने—

    नैनन बिछुड़न शोक नहीं था,

    ममता मयी, छाव तन मन पर

    नवजीवन क्षण—

    हसता-खिलता।

    नहीं भूलता, चंचल बचपन...

    झूलता है आँखों पर...!

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेश राजभर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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