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बच्चे अपने चित्रों में

bachche apne chitron mein

विवेक भारद्वाज

विवेक भारद्वाज

बच्चे अपने चित्रों में

विवेक भारद्वाज

और अधिकविवेक भारद्वाज

    बच्चे अपने चित्रों में

    अपना मन उकेरते हैं

    बोल पाते हैं सपनों का सार

    बता पाते हैं अपने भय

    बच्चे अपने चित्रों में

    घर बनाते हैं

    पहाड़, पेड़, दरिया,

    शिकारे, देवदार और चिनार

    बच्चे अपने चित्रों में—

    बनाते हैं एक साँप

    एक धनुष, एक लॉलीपॉप

    और अनिवार्यतः बनाते हैं तिरंगा

    कोई भी बच्चा जन्म से नहीं होता नास्तिक,

    माओवादी या विद्रोही

    उसके रंग छीने हैं किसी ने

    उसके हिस्से की मिट्टी

    जल जंगल और ज़मीन

    जीवन से हँसी

    उसकी लौरि-लहरी खोंस ली है किसी ने

    उसका सेब, त्रिशूल और तोता

    कोई उसका तिरंगा छीन

    थमा देता है इकरंगा

    बच्चे अपने चित्रों में

    चतुराई नहीं करते

    वे सहज होते हैं

    पानी की तरह

    मृदा कि तरह उपजाऊ

    उनके पानी में मिला देता है ज़हर कोई

    कौन उनकी मिट्टी में धतूरा बो जाता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विवेक भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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