Font by Mehr Nastaliq Web

अस्तित्ववान्

astitvvan

शशि शेखर

अन्य

अन्य

शशि शेखर

अस्तित्ववान्

शशि शेखर

और अधिकशशि शेखर

    एक इंसान जो रोता है

    तड़पता है

    भारी मस्तिष्क के साथ

    ख़ुद अपना सिर धुनता है

    गिड़गिड़ाता है

    उस देवता के आगे

    जिसे मान रखा था

    नियंता

    सृष्टि का

    दयावान, करुणाशील, परमपावन, अनघ

    सर्वशक्तिमान

    पर

    जब आता नहीं

    कोई उत्तर

    जब पाता नहीं

    कोई समाधान

    तो

    ग़ुस्सा करता है

    तोड़ता है

    मिट्टी के खिलौनों को

    अपने नाख़ूनों से ख़ुद को कर लेता है

    लहूलुहान

    और

    अपनी पीड़ा पर

    हँसता है—

    एक राक्षसी हँसी

    उस हँसी में

    तोड़ती है इंसानियत

    कहीं अपना दम

    क्योंकि वह इंसानियत

    उसकी अपनी नहीं

    समाज का दिया

    आदर्शवाद है—

    जिसे ढोते-ढोते

    घिस गई

    उसकी चेतना की प्रखरता,

    वह पशुता

    जो वह लेकर आया था

    प्रकृति से।

    जंगलों में

    विचरता

    ढूँढ़ता

    पकड़ लेता

    किसी नन्हे जंगली ख़रगोश को

    और

    काटता उसके कान

    अपने पैने दाँतों से

    उन दाँतों पर

    आज ख़ून लगा है

    वह ख़ून

    जो ख़ुद उसके भीतर

    बहता है

    पर

    अंतर है दोनों में

    यह ख़ून

    उस पानी हो गए

    ख़ून से बेहतर है,

    यह ख़ून

    उसकी चिरंतन प्यास की

    एक ख़ुराक है।

    वह नग्न है

    सिर से पैर तक

    किसी पशु की भाँति

    उछलता

    कूदता

    हुआँ-हुआँ करता

    पेड़ों पर सरकते

    काले सर्पों को चिढ़ाता

    खींचकर लपेट लेता

    अपने बदन पर

    उसका विष

    मार डालेगा

    उसके जीवन को।

    वह सूरज को देखता है

    देखता है

    उसकी तीक्ष्णता को

    महसूस करता है

    कुछ ढुलकते जलकणों को

    अपने सीने पर

    गुदगुदाते

    यह नमकीन पानी,

    यह खारा जल

    खा जाएगा

    उसके शरीर को

    धीरे-धीरे

    जैसे नाव को

    खाता है समुद्र का खारा जला

    आज उसकी आँखों में

    लालिमा है सूरज की

    वह अग्नि है

    जिसकी ऊर्जा से

    चलता है शरीर,

    वह गरमाहट है

    जो निःश्वास बनकर

    निःसृत होती है।

    एकटक, अपलक, निर्निमेष

    वह देखता है सूरज को

    उसकी प्रखरता को

    यह जानते हुए

    कि वह

    आँखों की रोशनी

    खो देगा

    पर कुछ परवाह नहीं

    आज

    जो पड़े सहेगा

    लड़ेगा

    भुगतेगा

    पर सब कुछ अपने बल पर!

    वह आज़ाद है

    स्वतंत्र है

    जिसे कोई दूसरा परिभाषित नहीं करता

    कोई छलना गुमराह नहीं करती

    वह स्वायत्त है

    परमपूर्ण

    वह देखेगा

    सहेगा

    लड़ेगा

    और मर जाएगा

    पर अपने बल पर

    क्योंकि

    वह स्वतंत्र है

    स्वतंत्रचेता और अस्तित्ववान्!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शशि शेखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए अदिति शर्मा द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY