आश्वस्ति

ashwasti

डॉ. अजित

डॉ. अजित

आश्वस्ति

डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    मेरी देह की त्वचा

    इतनी संवेदनहीन हो गई है कि

    एक नन्ही चींटी

    इसे धरती समझ दौड़ रही है

    बेपरवाह

    मैं उसकी दौड़ में कोई बाधा नहीं चाहता

    इसलिए लम्बवत पड़ा हूँ बहुत देर से

    मैं नहीं चाहता कि मेरे कोई हरकत

    उसे उसकी ग़लती का अहसास कराए

    धरती से कुछ फीट ऊपर

    चींटी का उत्साह देखते ही बनता है

    वो मेरे पैर के अँगूठे पर उगे बालों को

    जंगल समझ खेल रही भूलभुलैय्या

    त्वचा संवेदनहीन होकर

    पेश आती है धरती की तरह

    और धरती संवेदनहीन होकर बन जाती

    एक उखड़ी हुई त्वचा

    एक आँख से चींटी

    और एक आँख से धरती देखने पर

    इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ मैं

    जो चींटी मेरी देह को

    धरती समझ घूम रही है

    वो दरअसल व्यस्क नहीं

    मैं इसलिए आश्वस्त हूँ

    मुझे डंक का भय नहीं

    इसलिए उदार हूँ

    मेरी आश्वस्ति को

    उदारता या प्रेम नहीं समझा जाए

    त्वचा का संवेदनहीन होना

    मुझे देर रहा है

    कौतूहल देखने का आत्मविश्वास

    मैं वयस्क हूँ

    और चींटी नही है

    दोनों ले रहे है अपने अपने लाभ

    संवेदना का हीन हो जाना

    हम दोनों को सीखा रहा है

    अपने अपने हिस्से का लाभ लेना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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