आजकल एकदम खाली हूँ
इतना खाली कि मेरे हिस्से
कोई काम ही नहीं बचा,
कभी समय मुझ पर हँसता है
कभी मैं समय पर
और यह भी क्या इत्तेफाक़ है
मेरा समय सापेक्ष होना
मुझे निरपेक्षता का सिद्धांत समझा रहा है
वैसे न समय मेरे साथ है और
न ही मैं ही समय के साथ
जो लोग समय की रट लगा
दुहाई देते थे
अब पास नहीं फटकते,
मौत का ख़ौफ़ कभी रहा नहीं
आज भी नहीं है लेकिन
मैंने देखा है क़रीब से मौत को
एक नहीं, तीन-तीन बार
लोगों ने कहा कि मृत्यु ही सत्य है
लेकिन सत्य तो जीवन ही है
ऐसा न होता तो सब
जीने को लालायित न होते
हाँ, आज मैं महसूस कर रहा हूँ
मौत को भी उतने ही करीब से
जीतने क़रीब से जीवन को देखा
मेरी बैशाखी की टक-टक की आवाज़
करीब आती मौत का बुलावा है
मौत ने बना लिया है एक ओरा
मेरे इर्द-गिर्द,
कहते हैं—सात ऊर्जा स्तर है
जो मेरुदंड के गिर्द ऊर्जा चक्र की तरह
रहते हुए सुरक्षारत हैं
ये इंद्रधनुषी रंगों से शुद्ध और चमकदार
बन स्वस्थ रखते तो कभी
चमकविहीन हो करते बीमार भी
अगर ऐसा है तो
फिर इंतज़ार किया जा सकता है
एक बार फिर से मौत का
चेहरा, पीठ, जुबान सब कुछ ही तो अब
समय की छाप दिखा
चिढ़ा रहे हैं पल-पल
मौत से पहले कुछ काम कर लेना चाहता हूँ
इस खाली समय में
कब से गाँव नहीं गया
बचपन के दोस्त, खेल, प्रेम, झगड़ा
सब पर सोचने का ये माकूल वक़्त है
बहुत से हिसाब-किताब हैं जो अब
चुकता कर लेने चाहिए,
एक इच्छा थी कि जब कभी
खाली समय होगा
दिन भर मदिरा पान करूँगा
वक़्त है लेकिन प्याला नसीब कहाँ
साकी और हमप्याला भी नहीं कोई,
एक अरसा हुआ जब ख़रीदी थी कुछ और किताबें
बंडल पड़ा है लाइब्रेरी की किसी दराज़ में
सोचता हूँ—उन्हें निकाल सजा दूँ हर सफ़े में
ट्रोफियों पर भी तो जम गया है
धूल का एक पूरा अम्बार
जिन पर लिखी उपलब्धियाँ अब पढ़ नहीं पाता
खाली समय में मौत का इंतज़ार करना
कितना असहज कर रहा
ज़िंदगी के बेतरतीब पन्ने खुल रहे हैं
मैं पढ़ लेना चाहता हूँ हर वो पन्ना
जिसे पढ़ने का वक़्त ही नहीं मिला कभी,
कुछ दोस्त जो छोड़ गए हैं साथ
उनको याद कर लेना या फिर
उस व्यक्ति पर दया दिखाना
जिसकी बीवी छोड़ गई
चार बच्चों को उसके भरोसे,
पानी का घड़ा भी तो बदलना है
जो पिछली गर्मी में भी रिस रहा था
टपकती छत की मरम्मत भी लाज़िमी है
बूढ़े हो चुके पिता का
हाल भी तो नहीं पूछा एक अरसे से
उनकी दवा का पर्चा भी चिढ़ाता है,
बचपन की सहेली का हाल-समाचार भी जानना है,
मौत से पहले का समय
अचानक कितना अहम लगने लगा है
मैं इसका भरपूर उपयोग कर लेना चाहता हूँ।
- रचनाकार : संदीप तोमर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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