मीना कुमारी
बिस्तर पर जाते ही
किसी का माथा सहलाने के लिए
हुलसी हथेलियाँ
फफक पड़तीं इतनी
कि उसके चेहरे पर उभर आती थी कोख।
जलते बलुवे पर नंगे पैर
चली जा रही थी एक माँ
तलवों में कपड़ा लपेटे
जब हम उसे देख रहे थे अमराइयों में।
महुवा के पेड़ तले
अपने आँचल में बीनते हुए कुछ
शायद दुनिया का सबसे रस भरा फूल
उसके गाल खिल उठते थे
और साथ ही भर आती थीं आँखें।
यह क्या अल्लाह मियाँ?
मात्र आँसुओं की भीख के लिए ही
नहीं होते बड़री आँखों के कटोरे।
चाँदनी में सिर्फ़ चाँद-तारों से
बातें कर जी नहीं भरता
चाहिए ही चाहिए एक आदमी
अकेले आदमी का आसमान
कभी ख़त्म नहीं होता।
वर्जित फल खाया भी, नहीं भी
स्वर्ग में रही भी, नहीं भी
पर ज़िंदगी-भर चबाती रही धतूरे के बीज
और लोग कैंथ की तरह उसका कच्चापन
अपनी लाड़ली के लिए ही
रसूल ने भेजा था एक जानमाज़
मुट्ठी-भर खजूर और एक चटाई।
झुकी पलकें पलटकर लिखतीं
एक ऐसे महान अभिनय का शिलालेख
कि मन करता था चूम लें इसे
जैसे करोड़ों-करोड़ लोग चूमते हैं क़ाबे का पत्थर
या जैसे बच्चों को बेवजह चूम लेते हैं।
- पुस्तक : इसी काया में मोक्ष (पृष्ठ 90)
- रचनाकार : दिनेश कुशवाह
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2013
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