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अन्तिम सत्य

antim satya

हरिमोहन झा

अन्य

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हरिमोहन झा

अन्तिम सत्य

हरिमोहन झा

और अधिकहरिमोहन झा

    किच्छु नहि बुझैत छिऐ कोन तमाशा छइ

    सभ किछु तेना लगै छै जेना पानि कर बताशा छइ

    पता नाव कहाँ बहैत जाइत छइ

    सुझै छैक ओहि पार में कुहासा छइ

    मृत्यु की थिकैक? एकर बाद की होइत छड़

    रहस्य के जनैछ? एकर परिभाषा छइ

    स्वर्ग परलोक कहाँ? ककरो जानल छइ

    पुनर्जन्म हैत इहो मन केर दिलासा छइ

    सुख-कण जे भेटैछ एतऽ सँ सैह सत्य थिकइ

    शाश्वत ब्रह्म मोक्ष आदि, मात्र मृग पिपासा छइ

    कहियो भगवान केँ कतहु केओ छनि देखने

    केवल मनुष्यक एक सहारा छइ, आशा छइ

    सुख-दुखक भोग नहि जानि किऐक होइत छइ

    अपन-अपन कर्म छइ कि अपन अपन पासा छइ

    रंग आइ खेलि लियऽ, रस कने पीबि लियऽ

    काल्हि एतय रहबे करब, तकर कोन आशा छइ

    हँसि लियऽ, बाजि लियऽ, प्रेम-गीत गाबि लियऽ

    जाहि ठाम जैबाक अछि, तहाँ कोनो ने भाषा छइ

    काशी प्रयाग जाउ, गंगा-स्नान कय आउ

    आखिर एक दिन वैह कर्मनाशा छइ

    पूजा करइ छी, माला गर मे पहिरि लइ छी

    तावत पिजाइत ओम्हर काल केर गड़ासा छइ

    मिलन छनेक छइ, अनेक छइ बिछोह एतय

    किछुए दिन आशा, तकर बाद निराशा छइ

    जिनगी चिनगी जकाँ एक दिन मिझा जाएत

    मरी सिनेह बीच, यैह अभिलाषा छइ

    स्रोत :
    • पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : हरिमोहन झा
    • प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

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