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अंतरतम

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मयंक यादव

अन्य

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मयंक यादव

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मयंक यादव

और अधिकमयंक यादव

    लो अंतिम बेला चुकी 

    अब तुम मुझसे विदा लोगी 

    अंतरात्मा से कोई आवाज़ उठती है की तुम्हें रोक लूँ 

    तुम्हारे बिना रहा कैसे जाए? 

    “जाना” सुन कर कितनी ही प्यारी स्मृतियाँ आखों से ढुलक आती हैं

    पर हमारे साथ होने पर यह सच-मुच के आँसू होते हैं। 

    घास के मैदान में एक कोने से किसी को अकेले घूमता देखता हूँ 

    उसके कष्ट की कल्पना दूर से करता हूँ। 

    उसके पास जाने से डरता हूँ। 

    दुःखों से भरे होने के बाद भी 

    यह ध्यान रखना पड़ता है की सामने वाला क्या सोचेगा?

    हाय! 

    मैं भी कितना अभागा हूँ 

    दूसरों का दुःख सुनने से डरता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मयंक यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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