Font by Mehr Nastaliq Web

ध्यान के सहटार' खातिर

मोन के बहटार' खातिर

होइत रहै, चलैत रहै, मनैत रहै

उत्सव, तिहार

वहुविधि, वहुप्रकार।

कखनहुँ प्रकाश पर्वक जुटान

कखनो बिहार-दिवसक उत्थान

कीर्तिमानक ओरियान

कखनहुँ मदिरा बंदीक पतियानी

नै तँ खेलाउ गान्ही-गान्ही।

भरल रहय सतत् टी वी, अखबार

घिनबैत रहू रेडियो पर

कयने रहू कीच-किचानि

भने भरल जाइत हो गादि

मुदा, अपने रहियौ निर्लिप्त

बुझैत कमल पुष्प सन।

मचौने रह आसमर्द

बँटने रहू सबहक धियान

बरु मोन रहौ सुन्न मसान

अहाँ धयने रहू

कनही गायक बथान।

'चल' दियौ खेल

करबबैत रहू ढेपबाहि

पुरना गोधियाँ कैए रहलाहे काज

तखन कोन परवाहि।

अहाँ मात्र एतबए राखू ध्यान

फेंच ने उठय अहाँ पर

तेँ, ज’ड़ी सुंघबैत रहू

आ, अपने निश्चिंत भेल

बँसुरी बजबैत रहू।

दू-चारि टा ह्वाइट हाउस

दस-बीस टा प्लाट

एक-आध टा माल

आ, मालक माँटि सँ माल

बनिए जेतै तँ, की भ' जेतै?

लोक भाषा मरि जाय तँ मर' दियौ

भोट भाषा बँचल रहय

तखने भेटत मद्दी

अनामति रहत गद्दी।

मुदा, एहेन ने हुअए

बूझि जाय खेल-बेल

एहनो ने हुअए, जे

हाथो त'रक गेल,

लातो त'रक गेल।

स्रोत :
  • पुस्तक : नमहर हो चद्दरि जटबए (पृष्ठ 46)
  • रचनाकार : अमरनाथ झा ‘अमर’
  • प्रकाशन : अनुप्रास प्रकाशन
  • संस्करण : 2021

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY