Font by Mehr Nastaliq Web

अकुलाहट

akulahat

अनुवाद : सत्यभामा राज़दान

मिशल सुल्तानपुरी

अन्य

अन्य

और अधिकमिशल सुल्तानपुरी

    जून का दिन, दोपहर और तपता नभ

    आँखें सूरज की

    नज़रों में लेकर

    हज़ारों 'नमरूदी' कुंभीपाकों की लपटें

    पग-पग पर दहकाती ज़हन्नुम

    हमारे लिए

    थका-हारा राही

    कँवल चेहरा तमसाया

    सावन की क्षीण-जर्जर लता जैसी काया

    पसीने से तर माथा

    पिघला मक्खन का ढेला ज्यों

    वह छाँव में बैठा

    सोचा मैंने

    नींद की परी ऐसे ही राजकुमारों का

    मन मचलाती मोह लेती है

    पहुँचा जो झपटमारों की ऐसी बस्ती में

    झपकी लगते ही छीन लेंगे हाथ-पैर

    फिर लाए कहाँ से बेचारा बैसाखी

    देकर ज़रा-सा सहारा

    बदले में माँगेंगे गुर्दा

    जाएगा याचना लेकर थाने में

    छूट सकेगा दोनों पुतलियाँ देकर

    बोतल भर-भर ख़ून पिलाना होगा ग़वाहों को

    तभी खुलेगा पट न्याय का

    फिर जब दिखेगा वहाँ मैदान में

    टूट पड़ेंगी चीलें और गिद्ध उस पर

    नोच-नोच लेंगे अंग-अंग

    बचेगा बस हड्डियों का ढाँचा

    इस अँधेर नगरी में

    जो गिरा उसी पर टूट पड़े

    नरभक्षी कौवे

    ऊपर से ताक में है आकाश

    कि चूस लूँ ख़ून इसका

    नीचे खुली ज़मीन भुक्खाई

    पेड़-पौधे सभी बने यमदूत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 133)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : मिशल सुल्तानपुरी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY