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आक्रामक हवाई जहाज़ों के आने के पहले

akramak havai jahazon ke aane ke pahle

ऑटो द सोला

ऑटो द सोला

आक्रामक हवाई जहाज़ों के आने के पहले

ऑटो द सोला

और अधिकऑटो द सोला

    अगर सुबह खिले हुए ताज़े कमलों की छाया में

    सोए हुए इन बच्चों को भी अंत में मरना है

    अगर चाँद की छाया में खड़ी उस दीवार को गिरना है

    तो क़ब्रों के भेड़िये!

    तुम कोई चीज़ साबित छोड़ना, नहीं तो हमारा

    दु:ख दुगुना हो जाएगा।

    कार्नेशन के फूल और खिड़की पर झूलती लतरें

    कहती हैं हमें भूल जाओ!

    तितलियाँ उड़ते-उड़ते भीगी घास पर पड़े

    मुर्दों पर बैठ जाती हैं!

    क़ब्रों के भेड़िये!

    तुम गिरती हुई दीवारों का शोर

    और उनमें कुचलते हुए बच्चों की चीत्कार सुनोगे?

    क्या तुम सुबह को भी—

    कुहरे की क़ब्र में दफ़न कर दोगे?

    अगर इस पतझड़ के चाँद की छाया में

    सभी चीज़ों को तुम ध्वस्त करने आए हो

    तो कोई चीज़ साबित मत छोड़ना

    याद रखो कि इन बच्चों को भी मत छोड़ना

    जिन्हें देखकर गेहूँ की मासूम बालियाँ याद आती हैं।

    इन दीवारों को भी मत छोड़ना

    जो इतिहासों की याद दिलाती है।

    इन सुबहों को भी मत छोड़ना जो

    घायल बाँसुरियों की तरह सिसक रही हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 382)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : ऑटो द सोला
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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