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अकेले की कविता

akele ki kawita

प्रतिभा किरण

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प्रतिभा किरण

अकेले की कविता

प्रतिभा किरण

और अधिकप्रतिभा किरण

    अब जब सो चुके हैं

    परिवार के सभी सदस्य

    और मैं सोच रही हूँ

    अकेले में कविता

    पिता के पलकों-सी भारी

    माँ के बातों सी अर्थपूर्ण

    मेरी अधिकारिक

    'अकेले की कविता'

    सज्जा के लिए

    मेरे कमरे की

    लाल और नीली बत्तियाँ और

    पीड़ा को मेरी बेतुकी खोपड़ी

    सब ने जुगत लगाई है

    और मिलकर घेरे हुए हैं मुझे

    क्या होगा मेरा पहला शब्द

    आज पहले आँसू या कविता

    खिड़कियों ने ख़ुद को खुला छोड़ा है

    ताकि आ-जा सके

    बिल्लियों की बासी रुदन

    और बची-खुची उम्मीद

    कानों से होकर प्रार्थना सभाओं की

    आवाज़ें लौट रहीं हैं

    सोचती हूँ

    इन्हीं के साथ हो लूँ

    और तोड़ लाऊँ इनका

    अस्वीकृत अव्यय

    स्वीकारूँ अपनी कविता में

    शोकाकुलता समाप्त करूँ

    हृदय-गति को सुनते हुए

    उधेड़ आऊँ मन:भग्नों की परत

    धम्म से गिरे आकर लिखा हुआ सब

    तत्क्षण पूर्ण निद्रा को प्राप्त करूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रतिभा किरण
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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