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अहाँ के छी

ahan ke chhi

इलारानी सिंह

इलारानी सिंह

अहाँ के छी

इलारानी सिंह

और अधिकइलारानी सिंह

    एतय

    एहीठाम

    एही धरतीपर

    एही नील आकाशक नीचा

    जतय सुनैत छलियैक

    ऊर्जस्वित आशामय उद्घोष—

    मधुवाता ऋतायते

    मधुक्षरन्ति सिन्धवः!

    ततहि

    अस्फुट स्वरमे

    ठोर पटपटबैत

    अपनहि वाणीपर

    अपनहि चकित

    विस्मित

    सरिपहुँ प्रश्न-चिह्न जकाँ ठाढ़

    अहाँ के छी?

    महाकालक

    बज्रदन्तक छाँहमे

    सरिपहुँ प्रश्न-चिह्न जकाँ ठाढ़

    अहाँ के छी?

    बीसे बसन्तक त'ससँ झमान

    अकाल पक्क आमक

    चुटकल टिकोला सन—

    लटकल थुथुनपर

    आक्रोशक बंकिम रेखा नेने

    सरिपहुँ प्रश्न-चिह्न जकाँ ठाढ़

    अहाँ के छी?

    तमसा कए

    अपन माथक केश

    अपनहि हाथें नोचने

    वा

    औना कए

    अपन अविरोधशील थेथर गालकेँ

    अपनहि हाथें

    अगबे थापड़सँ

    तड़ातड़ प्रपूजित कयने

    अथवा

    अपन परछाहींसँ

    अपनहि भड़कने

    युग नहि पलटत!

    अपन मुँहपर

    अपने कारिख पोतैत

    सरिपहुँ प्रश्न-चिह्न जकाँ ठाढ़

    अहाँ के छी?

    स्रोत :
    • पुस्तक : इजोरियाक अङैठी मोड़ (पृष्ठ 9)
    • संपादक : माला झा
    • रचनाकार : इलारानी सिंह
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2004

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