आगामी

agami

मैं जड़ नहीं, मृत नहीं, अंधेरे का खनिज भी नहीं

मैं तो हूँ एक जीवंत प्राण

एक अंकुरित बीज हूँ मैं

मिट्टी मे पला, भयभीत

आकाश की पुकार पर आज ही

मैंने अपनी संशय भरी आँखें खोली हैं,

सपनों से घिरा हुआ हूँ मैं।

भले ही नगण्य हूँ, तुच्छ हूँ वटवृक्षों के समाज में

फिर भी इस छोटी-सी देह में

मर्मर ध्वनि बजती है,

धरती को फोड़

मैंने उजाले का आना-जाना देखा है,

इसीलिए मेरी जड़ों में है अरण्य की विराट चेतना।

आज सिर्फ़ अंकुरित हूँ

जानता हूँ कल छोटी-छोटी पत्तियाँ

उद्दाम हवा के ताल पर अपने सिर हिलाएँगी

फिर दीप्त टहनियाँ पसार दूँगा सबके सामने,

खिलाऊँगा विस्मय के फूल

पड़ोसी पेड़ो के चेहरों पर।

तेज़ तूफ़ान में भी मज़बूत हैं मेरी जड़ें

जानता हूँ मेरी टहनियों की बाधा से

तूफ़ान थमेगा ही,

जानता हूँ

मेरे अंकुरित साथी मेरे आह्वान पर

नए अरण्य के गीत में मुखरित होंगे,

अगले वसंत में जानना

मैं भी शामिल हो जाऊँगा बड़ों की जमात में

पत्तों की जयध्वनि प्रकट करेंगे सभी,

छोटा हूँ लेकिन तुच्छ नहीं—

मुझे पता है—मैं भावी वनस्पति हूँ

बारिश में, मिट्टी के रस मुझे यही सम्मति मिलती है,

उस दिन छाया में आकर

यदि वार करोगे कुल्हाड़ी का

तो भी मैं तुम्हें हाथ के इशारे से पुकारूँगा

फल दूँगा, फूल दूँगा, पक्षियों का कलरव भी दूँगा

एक ही मिट्टी में पला-बढ़ा

मैं तुम्हारा ही रिश्तेदार हूँ।

स्रोत :
  • पुस्तक : मैंने अभी-अभी सपनों के बीज बोए थे (पृष्ठ 25)
  • रचनाकार : सुकांत भट्टाचार्य
  • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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