आधुनिकता

adhunikta

आलोक आज़ाद

आलोक आज़ाद

आधुनिकता

आलोक आज़ाद

और अधिकआलोक आज़ाद

    मैं इक्कीसवीं सदी की

    आधुनिक सभ्यता का आदमी हूँ

    जो बर्बरता और जंगल पीछे छोड़ आया है

    मैं सभ्य समाज में बेचता हूँ

    अपना सस्ता श्रम

    और दो वक़्त की रोटी के बदले में

    मैंने हस्ताक्षर किया है

    आधुनिक लोकतंत्र के उस मसौदे पर

    जहाँ विरोध और बग़ावत

    दोनों ही सभ्यता का उल्लंघन हैं

    इस नए दौर में सब ठीक हो चुका है

    हत्याओं के आँकड़े शून्य हैं

    और मेरे ऑफ़िस में लगे टीवी में

    हताश चेहरे अब नज़र नहीं आते हैं

    पर ये बात

    मैं उस आदमी को नहीं समझा पाता

    जिसे कोसों दूर जंगल में

    लोकतांत्रिक राज्य की

    लोकतांत्रिक पुलिस की गोलियों से

    छलनी कर दिया गया है

    मैं एक सभ्य नागरिक हूँ

    जिसमें पीड़ाएँ यात्रा नहीं करतीं

    वो घड़ी की सुइओं की भाँति

    अनुशासन से चलती रहती हैं

    और मैं भी भागता रहता हूँ

    सुबह से शाम

    जैसे लहराती हो कोई लाश

    अपने ज़िंदा होने के भ्रम में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आलोक आज़ाद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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