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अबकी चुनाउ मा

abki chunau ma

जगजीवन मिश्र ‘जीवन’

और अधिकजगजीवन मिश्र ‘जीवन’

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    केतनउ बराउ फिरते भच्छि खइहैं पाँउ मा

    इनते जो चहौ खैरि तउ फिरि बैरु करउ

    मलिहम लगाइ पइहउ ना हर एक घाउ मा

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    हिन्दू मुसलमान कोइ सिक्ख ईसाई

    मानति हइँ खूनु एक सबै हैं सगे भाई

    मतलब परस्त हइँ बड़े हुसियार हुइ रहौ

    खूनी बयारि फिरि बही अबकी चुनाउ मा

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    छोड़वाइ सबइ कामु धामु संग लइ चलै

    कूदैं घरन-घरन मा यह सबका बड़ा खलै

    सबु खानु-पानु नासि छिछियाइ कै कहिनि

    जल्दी चलउ पंगारि लइ अबहीं नहाउ ना

    बन्दरन की फौज आई गयी हइ जो गाँउ मा

    फिरि तउ उठापटक सुरू मैदान मा भई

    कोई का हाँथु टूटिगा अँगुरी उतरि गई

    बाँदरु बुढ़ान हइ घुटा चावलु पुरान हइ

    गोतहलि गये हइँ नइथुआ सब एक दाँउ मा

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    मुँह ट्याढ़ रहइ अबता मुला भिल्लु हुइ गये

    बिरवा की सबइ भूलि के आकास छुइ गये

    घूमे फिरे जो साथ चना गुड़ खवाइगे

    उनहुन की नाक नोचिगे पहिले नोचाउ मा

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    सोचेउ अगर युक्ति तउ रोवइ का फिरि परी

    फिरि हाँथ पाँउ छोड़ि जो काटिनि यइ नरकसी

    बाँदर कहाँ लौ सूध हुइकै राजु चलइहैं

    अबहीं समय हइ कुछु करौ अपने बचाउ मा

    बन्दरन की फौज आइ गयी हइ जो गाँउ मा

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिरका (अवधी गीत संग्रह) (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : जगजीवन मिश्र ‘जीवन’
    • प्रकाशन : भगवत मेमोरियल इंटर कॉलेज समिति, मिश्रिख, सीतापुर
    • संस्करण : 2015

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