अब इजाज़त दे दो मेहरम

ab ijazat de do mehram

शाश्वत

शाश्वत

अब इजाज़त दे दो मेहरम

शाश्वत

और अधिकशाश्वत

    अब इजाज़त दे दो मेहरम

    इसलिए कि मुझे लग रहा कि

    तुम्हारे देश की दिशाओं ने भरम बना दिया है

    जबकि तुम रोज़ सुबह जाती हो

    तुम्हारे देश की सुबह दोपहर शाम

    बस नीली और गुलाबी

    के बीच फँस जा रही

    जबकि तुम्हें मौसम सुहाना या ख़राब समझ आता है

    तुम्हारे देश की लीचियों में मुझे स्वाद नहीं मिल रहा

    तुम हो कि उन्हें स्ट्रॉबेरी बताती रहती हो

    तुम्हारे देश के लोग अब तेज़ चलने लगे हैं मुझसे

    तुम भी तो भागती ही जा रही मेहरम

    इसलिए अब इजाज़त दे दो

    देखो

    जाते-जाते ही जा पाएगा कोई भी

    वैसे भी

    एक ही बैग है

    कपड़े रखें कि यादें सहेजें

    समझते-समझते कई अनर्गल दिनों से रुके हैं तुम्हारे देश

    बरसों कहीं रहकर

    रच-बसकर

    लोग कैसे चले जाते हैं मेहरम?

    मुझसे तो बैग भी नहीं हिल रहा

    जबकि इसमें सिर्फ़ गर्मियों के कपड़े हैं

    फिर किताबें तो उठने से रहीं मेहरम

    और उन पुरस्कारों का क्या

    जो अभिकल्पन, स्पंदन, अकादमियों में जीते गए हैं

    वे तो टूट जाएँगे स्टेशन से पहले ही

    तुम रख लेना,

    घर पर कह देना कि रूपा या सबीना का है

    नाम थोड़े लिखा है

    सोचे हैं,

    एक बार और जाएँगे

    बर्तन, पंखा, गद्दे लेने

    सालों साल सिर्फ़ तुमसे ही दोस्ती भी तो हुई

    किस जूनियर को दे कोई है भी तो नहीं

    कोई मज़लूम भी नहीं मिला मुझे आज तक

    तुम्हारे देश में मेहरम

    सब तुम सरीखे किसी दूसरे से प्यार करके ख़ुश हैं

    ख़ुद से प्यार करने वाले बहुत ख़ुश रहते हैं मेहरम

    मगर जानती हो,

    दूसरों से प्यार करने वालों का देश ख़ुश रहता है

    आह...!

    तुम्हारा देश मेहरम

    हम उससे सीख नहीं पाए दूसरों से प्यार करना

    इसलिए इजाज़त लेनी होगी

    जाने को आसान बनाना कोई खेल नहीं मेहरम

    कविता लिखनी पड़ती है

    पढ़ो, पढ़कर विदा दे दो

    उस मन को विदा दे दो

    जिसके चंचलता में

    तुम्हारे शहर के लड़कपन ने चिंगोटी की है

    उस सपने को विदा दे दो

    जिसके पूरा होने पर सबसे सुंदर मंदिर में बिन नहाए गए

    उस प्यार को विदा दे दो

    जो व्हाट्सएप से हाथ की छुवन तक आया और होंठ नहीं बन सका

    उस ग़ुस्से को विदा दे दो

    जो तुम्हारे इंतज़ार से पनपता और

    और तुम्हारे सुंदर मुँह को सोचकर प्यार होता रहा

    और जब सबको विदा दे रही

    तो उस लड़के को भी जाने दो

    जिसने तुम्हारी कल्पना करके तुम्हें मेहरम माना है

    जो तुम्हारे साथ कभी रहा ही नहीं

    जो अगले शहर में फिर यूँ ही फ़िदा होगा

    क्योंकि उसके शहर में

    ख़ुद से प्यार किया जाता है

    दूसरों से नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाश्वत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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