छोडू विद्यापति आब शिवसिंहक धाम
आउ बसु, आब हमर गाम
देखू एतौका समाजकेँ
बहुत दिन धरि गेल राधाक नख-शिखपर दृष्टि
आ केलियैक कृष्णक चल-चितवनक सृष्टि
किंवा राजाक नगर अट्टालिका प्रासादक वर्णन
आब लिखू हमर गामक खिस्सा
सत्ते गप्प!
कोना मरलै मंगली
दहेज कारणें फँसरी लगाकेँ
आ कोना मरल हमर प्रिय दोस खालिद
हिन्दु-मुसलमान केर दंगामे
कोना जरैत रहल
सबहक खोपड़ि
आ लहासकेँ कन्हा दय बला केओ नहि
नहि तँ कमसँ कम
हे नवका विद्यापति
अहीँ लिखू श्रम-संघर्षक कथा
आ सुनू तान धनरोपनीक
वा धनकटनीमे कचियाक सनसन स्वर
आ गिट्टी फोड़ैत जनानी केर
हथौड़ीक टंकार
पनभरनीक कोकिल कंठी-तान
वा कोसीक कछार परका बाढ़िमे
भासल जिनगीक गाथा
डुबैत शहर आ गाम एक्के संग
लिखू विद्यापति!
घिनायल-मिनायल, लूल्ह नांगरक कथा
आउ विद्यापति!
यैह लिखऽ लेल
हमर गाममे अपनेक स्वागत अछि
- पुस्तक : एतबे टा नहि (पृष्ठ 46)
- रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2017
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