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आज एक स्त्री घर में अकेली है

aaj ek stri ghar mein akeli hai

पूनम शुक्ला

पूनम शुक्ला

आज एक स्त्री घर में अकेली है

पूनम शुक्ला

और अधिकपूनम शुक्ला

    आज सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हैं

    घर में कोई नहीं है साथ

    आज एक स्त्री घर में अकेली है

    नींद में कुछ मीठे सपने देखते हुए

    आज वह कुछ देर से जागेगी

    होठों पर मीठी मुस्कान के साथ

    फिर ठंढ़ी हवा में बाहर निश्चिंत कुछ देर टहलेगी

    आज गुनगुनाती हुई वह पकाएगी अपनी पसंद का कुछ

    वह आज अपना मनपसंद संगीत सुनेगी

    आज ख़ुद ही थिरकेंगे उसके पाँव

    बिन पायल ही घर में छम-छम की आवाज़ गूँजेगी

    पूरा घर आज डोलेगा उसके साथ

    कुर्सी मेज़ सब बातें करेंगे उसके साथ

    आज वह ख़ूब खिल-खिलाकर हँसेगी

    आज वह ख़ूब जी भरकर करेगी स्नान

    कपड़े धोते वक्त अपने मन का मैल धो डालेगी

    आइने में देख आज वह ख़ुद से करेगी प्यार

    फिर अपने मनपसंद वस्त्रों को पहन पहन इतराएगी

    कहीं से बसंत नीचे उतर आएगा आज

    आज उसका ख़ुद से बातें करने का दिन है

    आज एक स्त्री घर में अकेली है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम शुक्ला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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