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कोई स्त्री ही रही होगी

जिसने सबसे पहले पत्थरों में बसी आग को

पहचाना होगा और बनैले जीवन से आग को निकाल

रचा-बसा दिया होगा अपनी गृहस्थी में

आग को साधते कई बार वह आग से खेली होगी

और आख़िर में आग से काम लेने में

सध गए होंगे उसके हाथ

आग से सिंके अन्न के दाने से

प्रतिष्ठित हुई होगी धरती में अन्न-गंध

जीविका के उद्यम से थक

अपने डेरे लौटा आदमी

पाया होगा पहली बार

जब पके अन्न का स्वाद

तब खिल उठी होगी उसकी आत्मा

और करुणा-प्रेम से भरा वह

निहारा होगा देर तक स्त्री को

स्त्री को भी अपना आदमी

बहुत अपना लगा होगा उस समय

छलक आई होंगी उसकी आँखें

और देर तक गूँजती रही होगी

उसकी चुप्पी में आग की कथा

आग की कथा में स्त्री

जिलाए है अपनी हथेली में आग

वह आग—सना है जिसका ताप

जीवन की ख़ुशबू से

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रेमशंकर शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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