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आ रहा हूँ यादें समेटकर

aa raha hoon yaden sametkar

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

अन्य

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वीरभद्र कार्कीढोली

आ रहा हूँ यादें समेटकर

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    सही नहीं है सोचना

    प्राण रहने पर ही महत्त्व होता है

    देह का

    सही नहीं है कहना

    आँसू बहने तक ही भीगी रहती हैं पलकें।

    चुरोट के धुएँ के साथ

    मन के आवेग

    उड़कर जा नहीं पाते हैं।

    नदी की गति देखकर धैर्य रखो—

    कहते थे कोई

    कई बार बाढ़ आई

    नदी में/ज़िंदगी में।

    आओ, लौटाना चाहता हूँ

    तुम्हारी धीरता और गति!

    कठोर/निष्ठुर मन आँसू भी

    पिघला सके

    कोमल मन तो वैसे भी पिघला रहता है।

    घात कर मन को चोटग्रस्त बना दिया

    पर, कैद नहीं कर पाए इसे

    इसीलिए उपहार के नाम पर

    खिले फूलों को तोड़कर

    नए वर्ष की अलस्सुबह

    देने नहीं सका तुम्हें।

    कितना महत्त्वपूर्ण है

    पल-पल जीवन का

    सेतु पर से पार होता मत सिखाओ

    अनभिज्ञ हूँ, तैरने में

    इसीलिए यह नदी

    तैरकर पार करना चाहता हूँ

    तुम भूलते जाओ

    यादें समेटते आऊँगा मैं

    तुम आँखों से देखते जा रहे हो

    मैं उसे अन्तःकरण से देखते हुए रहा हूँ

    तुम्हारे ही पीछे

    हर यात्रा का अंत होता है।

    नदी की गति को देखकर

    धैर्य रहने को मत कहना अब

    बाढ़ आने के बाद

    फिर मैं विचलित होऊँगा!

    ध्वस्त/ तबाह होऊँगा।

    कितना महत्त्वपूर्ण है, पल-पल ज़िंदगी का!

    इससे उठकर तुम भूलते जाओ

    यादें समेटते पल-पल

    रहा हूँ मैं, रहा हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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