हिन्दवी शब्दकोश
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दीर्घतमा
- शब्दभेद : संज्ञा
दीर्घतमा का हिंदी अर्थ
- एक ऋषि जो उतथ्य के पुत्र थे ।विशेष— महाभारत में इनकी कथा इस प्रकार लिखी है । उतथ्य नामक एक तेजस्वी मुनि थे, जिनकी पत्नी का नाम ममता था । ममता जिस समय गर्भवती थी उस समय उतथ्य के छोटे भाई देवगुरु बृहस्पति उसके पास आए और सहवास की इच्छा प्रकट करने लगे । समता न कहा 'मुझे तुम्हारे बड़े भाई से गर्भ है अतः इस समय तुम जाओ' । बृहस्पति ने न माना और वे सहवास में प्रवृत हुए । गर्भस्थ बालक ने भीतर से कहा— 'बस करो? एक गर्भ में दो बालकों की स्थिति नहीं हो सकती । जब बृहस्पति ने इतने पर भी न सुना तब उस तेजस्वी गर्भस्थ शिशु ने अपने पैरों से वीर्य को रोक दिया । इसपर बृहस्पति ने कुपित होकर गर्भस्थ बालक को शाप दिया कि दू दीर्घतामस में पड़ (अर्थात् अंधा हो जा)' । बृहस्पति के शाम से वह बालक अंधा होकर जन्मा और दीर्घतमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ । प्रद्वेषी नाम की एक ब्राह्मण कन्या से दीर्घतमा का विवाह हुआ, जिससे उन्हें गौतम आदि कई पुत्र हुए । ये सब पुत्र लोभ मोह के वशीभूत हुए । इसपर दीर्घतमा कामधेनु से गोधर्म शिक्षा प्राप्त करके उससे श्रद्धापूर्वक मैथुन आदि में प्रवृत्त हुए । दीर्घतमा को इस प्रकार मर्यादा भंग करते देख आश्रम के मुनि लोग बहुत बिगड़े । उनकी स्त्री प्रद्वेषी भी इस बात पर बहुत अप्रसन्न हुई । एक दिन दीर्घतमा ने अपनी स्त्री प्रद्वेषी से पूछा कि 'तू मुझसे क्यों दुर्भाव रखथी है ।' प्रद्वेषी ने कहा 'स्वामी स्त्री का भरण पोषण करता है इसी से भर्ता कहलाता है पर तुम अंधे हो, कुछ कर नहीं सकते । इतने दिनों तक मैं तुम्हारा और तुम्हारे पुत्रों का भरण पोषण करती रही, पर अब न करुँगी' । दीर्घतमा ने क्रुद्ध होकर कहा—'ले' आज से मैं यह मर्यादा बाँध देता हूँ कि स्त्री एकमात्र पति से ही अनुरक्त रहे । पति चाहे जीता हो या मरा वह कदावि दूसरा पति नहीं कर सकती । जो स्त्री दूसरा पति ग्रहण करेगी वह पतित हो जायगी । प्रद्वेषी ने इसपर बिगड़कर अपने पुत्रों को आज्ञा दी कि 'तूम अपने अंधे वाप को बाँधकर गंगा में डाल आओ ।' पुत्र आज्ञानुसार दीर्घतमा को गंगा मे डाल आए । उस समय बलि नाम के कोई राजा गंगा- स्नान कर रहे थे । वे ऋषि को इस अवस्था में देख अपने घर ले गए और उनसे प्रार्थना की कि 'महाराज ! मेरी भार्या से आप योग्य संतान उत्पन्न कीजिए ।' जब ऋषि सम्मत हुए तब राजा ने अपनी सुदेष्णा नाम की रानी को उनके पास भेजा । रानी उन्हें अंधा और बुढ्ढा देख उनके पास न गई और उसने अपनी दासी को भेजा । दीर्घतमा ने उस शूद्रा दासी से कक्षीवान् आदि ग्यारह पुत्र उत्पन्न किए । राजा ने यह जानकर फिर सुदेष्णा को ऋषि के पास भेजा । ऋषि ने रानी का सार अंग टटोलकर कहा 'जाओ, तुम्हें आग, बंग, कलिंग, पुंड्र और सुंभ नामक अत्यंत तेजस्वी पुत्र उत्पन्न होंगे जिनके नाम से देश विश्यात होंगे' ।ऋग्वेद के पहले मंडल में सूक्त १४० से १६० तक में दीर्घतमा के रचे मंत्र हैं । इनसें कई मंत्र ऐसे हैं जिनसे उनके जीवन की घटनाओं का पता चलता है । महाभारत में उनकी स्त्री के संबंध में जिस घटना का वर्णन है उसका उल्लेख भी कई मंत्रों में है । सूक्त १५७ मंत्र ५ में एक मंत्र है जिसे दीर्घतमा ने उस समय कहा था जब लोगों ने उन्हें एक संदूक में बंद कर दिया था । इस मंत्र में उन्होंने अश्विनी देवल से उद्धार पाने के लिये प्रार्थना की है ।