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अबकी दियरी के परब

abki diyri ke parab

मनोज भावुक

अन्य

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मनोज भावुक

अबकी दियरी के परब

मनोज भावुक

और अधिकमनोज भावुक

    अबकी दियरी के परब अइसे मनावल जाए

    मन के अँगना में एगो दीप जरावल जाए

    रोशनी गाँव में, दिल्ली से ले आवल जाए

    कैद सूरज के अब आजाद करावल जाए

    हिंदू, मुसलिम ना, ईसाई ना, सिक्ख भाई

    अपना औलाद के इंसान बनावल जाए

    जेमें भगवान, खुदा, गॉड सभे साथ रहे

    एह तरह के एगो देवास बनावल जाए

    रोज दियरी बा कहीं, रोज कहीं भूखमरी

    काश! दुनिया से विषमता के मिटावल जाए

    सूप, चलनी के पटकला से भला का होई

    श्रम के लाठी से दलिद्दर के भगावल जाए

    लाख रस्ता हो कठिन, लाख दूर मंजिल हो

    आस के फूल ही आँखिन में उगावल जाए

    आम मउरल बा, जिया गंध से पागल बाटे

    सखी, सखी ‘भावुक’ के बोलावल जाए

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज भावुक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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