मानैत छी जे नहि अछि अक्खन दुनियाकेर भूगोलमे
तैयो हमसभ बचा कऽ रखलहुँ जकरा माइक बोलमे
सोहर, लगनी, जटाजटिन कि झिझिया, साँझ, परातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
लोहछल नस-नसमे एखनहु तिरहुतिया सोनित बरकैए
केहनहु बज्जर मैथिल केर धड़कनमे मिथिलहि धड़कैए
जिनगीक तुलसी चौरामे नित बरैत दीपक बातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
बगय-बानि बदलल रहितो माथा संस्कारक पाग जतऽ
विद्यापतिकेर गीतक सङ्ग पसरल मधुमय अनुराग जतऽ
होरीक रङ्ग, धुरखेलक सङ्ग सुकरातीक उक्कापातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
सुरुजक अगुआनीलए जइठाँ महिँस-पीठपर पसर खुलै
सैर बराबरि गबैत जतऽ पौरखिया चाँचर प्रेम झुलै
करसी जरबैत घूरमे आ कनकन्नी पचबैत गाँतीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
मन-मनमे दहकैत चिनगीकेँ हवा लगाकऽ प्रखर करी
अन्हड़िमे बहकैत जिनगी ठेकनाएल पथपर मुखर करी
कतऽ-कतऽ बौआयब कते, जोड़ी मन-तार गतातीमे
एकहकटा मिथिला जीबैए, एकहक मैथिल छातीमे
- पुस्तक : ई-मिथिला
- संपादक : बालमुकुन्द
- रचनाकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि
- संस्करण : 2025
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.