Font by Mehr Nastaliq Web

कहाँ गइल

kahan gail

सूर्यदेव पाठक ‘पराग’

अन्य

अन्य

और अधिकसूर्यदेव पाठक ‘पराग’

    कहाँ गइल गाँवन का माटी के गंध?

    आम का बगइचा में

    कोइल के मधुर तान,

    चिक्का-कबड्डी में

    लड़िकन के रमे प्रान,

    झिहिर-झिहिर पुरवा बाँटेले मकरंद!

    एक साथ मिल-जुल के

    गावल रामायन,

    भेद-भाव भूलि रोज

    होत रहे मनसायन,

    जीत-हार, सुख-दुख से सभकर संबंध!

    जगह-जगह तिरसठ ना

    छत्तिस के बा नाता,

    अपने खातिर जीयल

    नीक अब बुझल जाता

    काहे हर आदमी भइल बा स्वच्छंद!

    ताल-तलैयन तक कै

    सीमा अब टूट रहल,

    बूँद-बूँद बिखर-बिखर

    धारा से छूट रहल,

    लहर-लहर उछलत बा होके निर्बध!

    ईटा का ईटे से

    आपस में बा झगड़ा,

    फोरत बा दोसरा के

    जेतना जे बा तगड़ा,

    शकुनी के हाथे सउँपा गइल प्रबंध!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अलग-अलग रंग (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : सूर्यदेव पाठक ‘पराग’
    • प्रकाशन : प्रभात कुमार पाठक
    • संस्करण : 2009

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY