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नदी और पहाड़

nadi aur pahaD

एक गाँव में एक बुझब्बौल रहा करता था। उसके पास हर प्रश्न का उत्तर होता था। प्रश्न चाहे जैसा हो, वह अपनी सूझ-बूझ से उसका तत्काल उत्तर दे दिया करता। एक बार बुझौव्वल के गाँव के लड़के का वैवाहिक संबंध दूसरे गाँव की लड़की से तय हुआ। विवाह की सभी तैयारियाँ हो गईं। बारात सजाई गई और दूल्हा बारात लेकर लड़की के गाँव पहुँचा। बारात में बुझौव्वल भी शामिल था। उसे भी विवाह समारोह में बहुत आनंद रहा था। किंतु तभी रंग में भंग पड़ गया। किसी ने लड़की को कह दिया कि दूल्हा मूर्ख है और वह लड़की के योग्य नहीं है। लड़की ने इसे सच मान लिया और विवाह करने से मना कर दिया।

अब सारे बारातियों के सम्मान का प्रश्न खड़ा हुआ। दूल्हा मूर्ख नहीं था किंतु बुद्धिमान भी नहीं था। औसत बुद्धि का था। फिर भी बराती-घराती सभी ने लड़की को समझाने का प्रयास किया कि उसे इस प्रकार की हठ नहीं करनी चाहिए।

इस पर लड़की ने कहा कि यदि दूल्हा मेरे प्रश्नों का सही-सही उत्तर दे देगा तो मैं उसके साथ विवाह कर लूँगी अन्यथा मैं कुँवारी रहना पसंद करूँगी।

लड़की का प्रस्ताव सुनकर बाराती चिंतित हो उठे। उन्हें लगा कि यदि दूल्हा लड़की के प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे सका तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी। फिर कोस तक उनकी और उनके गाँव की हँसी होगी। तब बुझौव्वल ने बारातियों को ढाँढ़स बँधाते हुए कहा, ‘आप लोग चिंता करें। मैं आपके साथ हूँ। बस, दूल्हे को इतना समझा दीजिए कि लड़की को वह प्रश्न दुहराने को कहे। जब लड़की प्रश्न दुहराएगी तो इस बीच मैं धीरे से दूल्हे को उसका उत्तर बता दूँगा।’

बारातियों ने बुझौव्वल की बात मान ली। दूल्हा ने भी चैन की साँस ली।

‘खोदने वाले ने इतनी लंबी और गहरी नदी कैसे खोदी? और यदि खोदी तो उसमें से निकलने वाले पत्थर, मिट्टी आदि कहाँ फेंके?’ लड़की ने दूल्हे से प्रश्न किया।

दूल्हे ने योजना के अनुसार लड़की को प्रश्न दुहराने के लिए कहा। उसने ऐसा अभिनय किया मानो वह प्रश्न ठीक से सुन सका हो। जब तक लड़की ने प्रश्न दुहराया तब तक बुझौव्वल ने दूल्हे को प्रश्न का उत्तर बता दिया। दूल्हे ने बड़े आत्मविश्वास के साथ प्रश्न का उत्तर दिया, ‘खोदने वाले ने चट्टान की परतों से नदी को खोदा और उसमें से निकलने वाले मिट्टी और पत्थर कहाँ फेंके, यह कोई अंधा भी बता सकता है।’

‘क्या मतलब?’ लड़की बौखलाई।

‘और क्या? तुम्हें क्या डोंगर (पहाड़) नहीं दिखाई देते हैं या तुमने डोंगर के बारे में सुना ही नहीं है? अरे, ये डोंगर नदी खोदने से निकले पत्थर और मिट्टी से तो बने हैं।’ दूल्हें ने उत्तर दिया।

इतना चतुराई भरा उत्तर सुनकर लड़की दूल्हे की बुद्धिमत्ता का लोहा मान गई। उसने दूल्हे के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया। किंतु बुझौव्वल को लगा कि यह लड़की के साथ धोखाधड़ी है। अतः उसने लड़की को सब सच-सच बता दिया कि उत्तर उसने दिया था।

‘जिस गाँव में आप जैसा बुझौव्वल हो वहाँ के लड़के संग विवाह करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है।’ लड़की ने कहा।

इसके बाद धूम-धाम से विवाह हुआ और बाराती नदी-पहाड़ होते हुए दुल्हन लेकर अपने गाँव लौटे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 258)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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