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प्रेतबाधा

pretbadha

एक बार भगवान शंकर ने तीन रास्ते बनाए। उन पर अपनी शक्तियों को विचरण करने के लिए छोड़ दिया। शुभकर्म वाली शक्तियाँ गढ़ासार की ओर चल पड़ीं। उन शक्तियों की स्वामिनी लक्ष्मी थी अतः गढ़ासार में लक्ष्मी का वास हो गया। वह क्षेत्र धन, धान्य, सुख, संपदा से भर गया।

दूसरे रास्ते पर कल्याणकारी शक्तियाँ चल पड़ीं। वे शक्तियाँ रजतगुण वाली थीं अतः उस क्षेत्र को चाँदी का वरदान मिला।

तीसरे रास्ते पर आसुरी शक्तियों ने चलकर जिस जगह को अपना आवास बनाया वही पातालकोट कहलाया। पातालकोट के रहस्यमयी भौगोलिक वातावरण में आसुरी शक्तियों पर विश्वास किया जाने लगा। पातालकोट में निवास करने वाले एक युवक पर प्रेतबाधा का प्रभाव पड़ गया। वह रोने के समय हँसता और हँसने के समय रोता। जागने के समय सोता और सोने के समय जागता। युवक के परिवार वाले बहुत परेशान हो उठे। वे भुमका (झाड़-फूँक करनेवाला) के पास पहुँचे। भुमका ने युवक की आँखें देखीं और तत्काल बता दिया कि उसे एक युवती का प्रेत लगा है जिसके कारण वह सारे काम आचरण के विपरीत कर रहा है। युवक के परिवारवालों ने भुमका से निवेदन किया कि वह प्रेत से युवक को मुक्ति दिलाए।

‘इसके लिए दो मुर्ग़ों और एक बकरे की बलि देनी होगी।’ भुमका ने बताया।

युवक के परिवार वालों के पास इतना धन नहीं था कि वे दो मुर्गे़ और एक बकरा बलि के लिए ख़रीद सकें। उन्होंने और कोई सस्ता और सरल उपाय बताने की विनती की।

पहले तो भुमका ना-नुकुर करता रहा फिर उसने कहा, ‘यदि युवक शंकरजी की प्रतिमा पर एक हज़ार बेलपत्र चढ़ाएगा तो उस पर से प्रेत बाधा दूर हो जाएगी। युवक इस मानसिक स्थिति में नहीं था कि वह शंकरजी की प्रतिमा पर एक हज़ार बेलपत्र चढ़ा पाता। युवक के परिवारवालों की इस सरल उपाय पर भी चिंता दूर नहीं हुई। तब गाँव की एक युवती आगे आई और उसने युवक के बदले शंकर जी पर बेलपत्र चढ़ा कर उसे प्रेतबाधा मुक्त कराने का प्रस्ताव रखा। युवक के परिवार वाले मान गए।

युवती ने उसी दिन शंकर जी की प्रतिमा पर एक हज़ार बेलपत्र चढ़ाए जिससे शंकरजी ने प्रसन्न हो युवती से वर माँगने को कहा।

‘भगवन! मैंने अपने लिए नहीं बल्कि इस युवक के लिए आपको प्रसन्न करने का अनुष्ठान किया था अतः आप इसके ऊपर छायी प्रेतबाधा दूर कर दें। शंकरजी ने युवती के निस्वार्थ सेवाभाव को देखकर उसे विशेष वरदान दिया तथा युवक की प्रेतबाधा दूर कर दी। कुछ दिन बाद दोनों परिवारों की सहमति से युवक और सुवती परस्पर विवाह करके सुखी जीवन बिताने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 261)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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