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गंधर्व सेन मर गया

gandharv sen mar gaya

एक दिन एक वज़ीर ज़ोर-ज़ोर से रोता हुआ दरबार में आया। नवाब ने उससे रोने का कारण पूछा। वज़ीर ने तख़्त के पायों को चूमा और ज़मीन तक झुककर बोला, “गंधर्व सेन मर गया जहाँपनाह!” सुनकर नवाब भी रो पड़ा। रोते-रोते ही बोला, “या अल्लाह, गंधर्व सेन मर गया!” मरहूम के लिए इकतालीस दिन का मातम मनाने का फ़रमान जारी करके नवाब ने दरबार बरख़ास्त कर दिया। नवाब हरम में गया तब भी उसके आँसू बंद नहीं हुए। बेगमों ने रोने का कारण जानना चाहा तो नवाब ने रुंधे गले से बताया कि गंधर्व सेन मर गया। बेगमें छाती पीट-पीटकर रोने लगीं। पूरे जनाने में मातम और अफ़रा-तफ़री का आलम तारी हो गया।

बड़ी बेगम की नौकरानी को इस गुलगपाड़े का सबब समझ में नहीं आया। उसने बड़ी बेगम से पूछा, “ग़रीबनवाज, सब रो क्यों रहे हैं?” बेगम ने आह भरकर कहा, “बेचारा गंधर्व सेन गया।” नौकरानी की परेशानी फिर भी कम नहीं हुई, “कौन गंधर्व सेन? क्या वह नवाब साहब का बहुत नज़दीकी था?” “ओह, यह तो मुझे पता नहीं,” बेगम ने कहा और भागी-भागी नवाब के पास गई। उसने नवाब से पूछा कि यह गंधर्व सेन कौन था जिसकी मौत पर सब रो-रोकर हलकान हो रहे हैं। नवाब के पास कोई जवाब नहीं था। उसे झेंप महसूस हुई। वह दरबार में गया और वज़ीर को बुलाकर पूछा, “यह गंधर्व सेन कौन था जिसकी मौत पर हम दुखी हो रहे हैं?” वज़ीर ने कहा, “माफ़ करें हुज़ूर, ग़ुलाम नहीं जानता कि वह कौन था। मैंने कोतवाल को यह कहकर रोते देखा कि ‘हाय, गंधर्व सेन मर गया’ तो उसका साथ देने के लिए मैं भी रोने लगा।” नवाब बरस पड़ा, “गधा कहीं का! जाओ, पता करो कि गंधर्व सेन कौन था।” वज़ीर झुका और जितनी तेज़ी से भाग सकता था भागता हुआ कोतवाल के पास गया। कोतवाल उसे महल के सदर दरवाज़े पर खड़ा मिला। उसने कोतवाल से पूछा कि गंधर्व सेन कौन था। खोई-खोई निगाहों से वज़ीर को देखते हुए कोतवाल ने बताया कि दरअसल मैं वह नहीं जानता कि गंधर्व सेन कौन था। उसने जमादार को रोते और यह कहते सुना कि ‘गंधर्व सेन मर गया तो वह भी रोने लगा और वज़ीर को इत्तला कर दी। अब वज़ीर और गंधर्व सेन मर गया कोतवाल दोनों ने जमादार को पकड़ा और उससे पूछा कि वह जिसके लिए रो रहा था वह गंधर्व सेन कौन था। जमादार ने जवाब दिया, “हुज़ूर, मैं क्या जानूं कि वह कौन था और क्या था! वह तो मैंने अपनी बीवी को गंधर्व सेन की मौत पर रोते देखा तो उसके दुख से मेरा दिल भी भर आया और रोते हुए हुज़ूर को बताने चला आया। सरकार तो जानते हैं कि किसी को हँसते या रोते देखकर हमें भी उसकी छूत लग जाती है और हम भी हँसने या रोने लगते हैं। मैं भी बीवी को रोते देखकर रोने लगा।” तीनों मिलकर जमादारनी के पास गए। वह भी गंधर्व सेन से अनजान निकली। बोली कि उसने तो तालाब पर धोबिन को फूट-फूटकर रोते और कहते सुना कि उसका गंधर्व सेन मर गया।

अब चारों धोबिन के घर गए और उससे पूछा कि वह सुबह क्यों रो रही थी और गंधर्व सेन उसका क्या लगता था। धोबिन फिर रो पड़ी, “मेरे भाग फूट गए। मेरा कलेजा फटा जा रहा है। वह हमारा पालतू गधा था। उसे मैं बेटे से भी ज़्यादा चाहती थी।” कहते-कहते वह बुक्का फाड़कर रोने लगी। चारों बहुत शर्मिंदा हुए और तेज़ी से चले गए।

वज़ीर महल में गया और नवाब के पैर पकड़कर हक़ीक़त बयान की कि गंधर्व सेन जिसके लिए सब रो रहे थे धोबिन का पालतू गधा था। नवाब उस पर बरस पड़ा, पर उसे कोई सज़ा नहीं दी।

जब यह ख़बर हरम में पहुँची तो नवाब और दरबारियों पर बेगमें इतना हँसी, इतना हँसी कि उनका पेट दुखने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 190)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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