बाघ और सुअर
कितनी सुंदर पहाड़ी,पहाड़ी तले नदी,नदी के पास जंगल.....। इस जंगल में एक मादा सुअर अपने बच्चों के साथ रहा करती थी। सारा दिन बच्चे अपनी माता के साथ जंगल में घूमते रहते और साँझ होने पर अपने डेरे में लौट आते।
एक दिन की बात है। सवेरे-सवेरे मादा सुअर अपने बच्चों के साथ जंगल के भीतर जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसी समय अचानक बाघ की गर्जना सुअरों ने सुनी और मारे डर के अपने डेरे में छिप गए। बाघ धीरे-धीरे उनके डेरे के पास पहुँचने लगा था। बारंबार बाघ की दहाड़ सुन कर और बाघ को डेरे के निकट आते देख कर मादा सुअर ने विचार किया आज बाघ मेरे बच्चों को खा जाएगा। ऐसा सोच कर वह अपने बच्चों को लेकर नदी की ओर भाग निकली।
बारंबार बाघ की दहाड़ सुन कर मादा सुअर और उसके बच्चे बगट भाग रहे थे। सामने भागे जा रहे थे सुअर और उनके पीछे दौड़ रहा था बाध। बाघ सुअरों का पीछा करता जा रहा था। भागते-भागते मादा सुअर पलट कर बाघ को देखती भी जा रही थी। फिर वह अपने बच्चों को देखती तो कभी बाघ को। आज तो बाघ खा ही जाएगा रे बच्चो। भागें...यहाँ से जल्दी भागें...। कहते हुए मादा सुअर गीत गाने लगी :
तेल की इंडिया टुड़क-टाड़क,बच्चों को छिपाएँ अब
भागें माँ धुक-धुम, वह हम तक पहुँच गया है। तेल...
इस तरह गीत गाते-गाते वह बच्चों सहित भाग रही थी। बाघ उनका पीछा करता आ रहा था। भागते-भागते सुअर और बाघ नदी के किनारे पहुँच गए। मादा सुअर ने विचार किया, अब क्या उपाय करें? बुद्धि कुंठित हो गई....। मादा सुअर ने इधर-उधर देखा और रेत खोदने लगी। रेत खोदी और सारे बच्चों को उन गड्डों में छिपा कर स्वयं भी उन्हीं गड्ढों में से एक में छिप गई। किंतु सभी सुअरों की पूँछें ऊपर थोड़ी-थोड़ी दिख रही थीं। किसी-किसी की पूँछें हिल भी रही थीं। तभी बाघ वहाँ पहुँच गया और क्रोधित होकर सुअरों को खोजने लगा। बाघ मारे ग़ुस्से के दहाड़ रहा था और सुअरों को खोज रहा था। तभी अचानक देखा, रेत के पास कुछ चीज़ हिलती हुई-सी लगी। पास जाकर देखा। अब बाघ भी डर गया और एक बार तो वह आगे जाता लेकिन डर कर अगली बार पीछे भी हट जाता। वह बारंबार वहीं पर उछल-कूद कर रहा था।
बाघ ने सोचा,हाँ.... अब मैं जान गया। ये सभी रेत के भीतर छिपे हुए हैं। बाघ ने इधर-उधर देखा और पास पहुँच कर एक सुअर की पूँछ को जम कर काट दिया। इसके बाद क्या बताएँ! पूँछ को काटते ही सुअर व्याकुल होकर रिरियाने लगा। उसका रिरियाना सुन कर बाकी सभी सुअर भी गड्डों से बाहर निकल-निकल कर ज़ोरों से रिरियाने लगे। फिर क्या बताएँ! वहाँ सभी सुअरों के रिरियाने की आवाज़ सुन कर बाघ बहुत ज़ोरों से डर गया। क्या हो गया, कैसे हो गया? वह कुछ समझ ही नहीं सका और वहाँ से बगटुट भागना शुरु किया।
बाघ को जंगल के भीतर भागते देख मादा सुअर ने प्रसन्न होकर अपने बच्चों को लिपटा लिया। बच्चों को लाड़ किया। फिर सभी नदी की ओर चले गए।
मेरी कहानी पूरी हो गई।
- पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 161)
- संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
- संस्करण : 2013
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