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लोमड़ी और चीते की दुश्मनी

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पुराने ज़माने की बात है, एक जंगल था। उस जंगल में एक लोमड़ी और एक चीता रहते थे। दोनों में इतनी गहरी दोस्ती थी कि के एक-दूसरे को देखे बिना नहीं रह सकते थे। एक थाली में खाना,एक बिस्तर में सोना और एक साथ रहना चलता था। दोनों साथ-साथ शिकार के लिए निकलते थे। उन दोनों की मित्रता देख कर बाक़ी सभी जानवर उनसे जलते थे।

एक दिन की बात है। दोनों रोज़ की तरह शिकार करने निकले। उस दिन शिकार में लोमड़ी को एक चिड़िया मिली। पता नहीं उस दिन कैसे उसकी मति वाम हो गई,उसने अकेले ही उस चिड़िया को खा लिया। यह देख-सुन कर चीता बोला,क्यों बहन! रोज़ हम दोनों मिल-बाँट कर खाते थे। आज तुम अकेले ही खा गईं? फिर बोला,यदि आज के बाद मुझे भी शिकार मिला तो मैं भी अकेले ही खा जाऊँगा।

इस तरह उस दिन से वे दोनों अलग-अलग रहने लगे। उनमें अब बदले की भावना जागृत हुई। उन दोनों ने एक-दूसरे को मार डालने का निश्चय किया। एक दिन चीता लोमड़ी को मार कर खाने के लिए निकला।आज किसी भी स्थिति में लोमड़ी को अपना भोजन बनाऊँगा ही उसने सोचा। जंगल में घूमते-घूमते लोमड़ी मिल गई। लोमड़ी भी चीता को खा जाने की बात मन-ही-मन सोच रही थी,किंतु उस दिन दोनों में से किसी की भी हिम्मत नहीं हुई।

फिर एक दिन घूमते-घूमते चीते की लोमड़ी से भेंट हो गई। लोमड़ी उस समय दीमक के दूह को बजा रही थी,उसके भीतर मधुमक्खी का छत्ता था। उसे देख कर चीता बोला,यह तुम क्या कर रही हो,लोमड़ी बहन?

लोमड़ी बोली,क्या करूँ चीता भाई! पुरखों के समय का बाजा है यह। उसे ही बजा रही हूँ।

चीता बोला,लोमड़ी बहन! मुझे भी बजाने दोगी? मैं भी बजा कर देखता हूँ।

लोमड़ी बोली,ठीक है, तुम भी अपना शौक़ पूरा कर लो। फिर बोली,मैं तुम्हें एक अच्छी-सी लकड़ी ला कर देती हूँ ताकि तुम अच्छे से बजा सको। ऐसा कह कर लोमड़ी ने एक बड़ी-सी लकड़ी ला कर चीता को धमा दी। चीता बजाने को तैयार ही था कि लोमड़ी ने उसे रोक दिया। चीता बोला,क्या बात है लोमड़ी बहन? क्यों रोक रही हो?

लोमड़ी बोली,मैं यहाँ से कुछ दूर चली जाती हूँ,तब तुम बजाना। मैं भी सुनूँ कि वहाँ तक इस बाजे की आवाज़ जाती भी है या नहीं।

यह सुन कर चीते ने भी हामी भरी। लोमड़ी वहाँ से कुछ दूर चली गई और वहीं से चिल्ला कर बोली,हाँ चीता भाई! अब ज़ोर-ज़ोर से बजाओ।

सुन कर चीते ने आव देखा ताव,बजाने लगा ज़ोरों से। दूह के भीतर से मधुमक्खियाँ निकलीं और चीते को बुरी तरह काट खाया। चीता दर्द से छटपटाने लगा। लोमड़ी ने उसकी छटपटाहट देखी और भाग खड़ी हुई चीता भी जैसे-तैसे अपने को बचा कर वहाँ से भाग खड़ा हुआ। कई दिनों बाद उसके जख्म भरे। वह सोचने लगा,'अब चाहे कहीं भी क्यों मिले यह मक्कार लोमड़ी,अब इसे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूँगा।'

फिर एक दिन चीता निकला शिकार पर। देखा, लोमड़ी एक नाले में रेत से खेल रही थी। चीता मौक़ा अच्छा जान कर वहाँ जा पहुँचा बोला,क्या कर रही हो लोमड़ी बहन?

लोमड़ी बोली,क्या करूँगी चीता भाई! बस! अपने पुरखों के समय का सरसों था,उसी को नाप रही हूँ।

चीता उसकी बातों में गया और बोला,ज़रा मुझे भी तो नापने दो,लोमड़ी बहन।

लोमड़ी बोली,चीता भाई! तुम तो मुझे खाने की फिराक में हो। मैं तुम्हें खेलने या नापने कैसे दूँ?

चीता बोला,अरे नहीं लोमड़ी बहन। मैंने तो तुम्हें यूँ ही डराया था। तुमने तो उस दिन बड़ी ही बेरहमी से मुझे मधुमक्खियों से कटवाया था,न,इसीलिए मुझे तुम पर ग़ुस्सा गया था।

लोमड़ी बोली,ख़ैर,छोड़ो इन छोटी-छोटी बातों को। ऐसा कहते हुए उसने चीते को रेत नापने का न्योता दिया। चीते ने भी रेत को सरसों समझ कर नापना शुरु किया। लोमड़ी बोली, देखो भाई! तुम ज़रा भुलक्कड़ हो। इसीलिए ज़रा ठीक से देख कर नापना। अपनी आँखें फाड़ कर देखते चलो।

उसके ऐसा कहने पर चीता अपनी दोनों आँखें फाड़ कर नापने लगा। लोमड़ी ने इसी बीच दोनों हाथों से रेत लेकर चीते की आंखों में डाल दी और वहाँ से भाग खड़ी हुई। चीता बेचारा आँखें रगड़-रगड़ कर परेशान होने लगा। दर्द से बिलबिला उठा वह। उसने सोचा,'अब किसी भी कीमत पर तुम्हें नहीं छोडूंगा री लोमड़ी।' बड़ी मुश्किल से 15-20 दिनों में उसकी आँखें ठीक हुई।

एक दिन फिर से चीता लोमड़ी की खोज में निकला। उस दिन लोमड़ी जंगल में पत्तों से चिपटा (गट्ठा) बना रही थी। घूमते-घूमते चीता लोमड़ी तक पहुँच गया। चीता बोला,आज तो मैं तुम्हें खा ही जाऊँगी री मक्कार,आज तुम किसी भी हालत में मुझसे नहीं बच सकतीं।

लोमड़ी बोली,ठीक है, खा लेना। किंतु पहले मेरी एक बात सुनो।

चीता बहुत ग़ुस्से में बोला,मैं आज तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा। आज तुम्हारा अंत कर के ही रहूँगा।

लोमड़ी बोली,अरे चीता भाई! ज़रा सुनो तो।

चीता बड़ी मुश्किल से थोड़ी देर को रुका। उस समय जंगल में चारों तरफ़ आग लगी थी। बंदूक़ की गोली की तरह आवाज़ें रही थीं। लोमड़ी ने कहा,तुम कुछ सुन रहे हो? अभी लड़ाई चल रही है,इसीलिए मैं छिपने के लिए गठरी बना रही हूँ।

लोमड़ी की बात सुन कर चीता घबरा गया और बड़ी विनम्रता से कहने लगा,लोमड़ी बहन! मेरे लिए भी एक चिपटा बना दो। मेरी रक्षा करने वाली अब केवल तुम ही हो।

लोमड़ी यही तो चाहती थी,उसे मौक़ा मिल गया। उसने उसे बचाने का आश्वासन दिया। लोमड़ी बोली,ठीक है। अब तुम जल्दी से माहुल का पत्ता तोड़ लाओ।

चीता बड़ी ही फ़ुर्ती से पत्ते तोड़ लाया। लोमड़ी ने चिपटा बना दिया फिर एक लंबी रस्सी भी मंगवाई। चीता जल्दी से रस्सी भी ले आया। तब लोमड़ी ने उसे चिपटा में बाँध दिया ताकि चीता निकल पाये,इसके बाद उसने चारो ओर से आग लगा दी। चीते को उसने पहले ही समझा दिया था कि जिधर आवाज़ आए उधर ही लुढ़क जाना। चीता क्या करता,जिधर ज़्यादा आग थी,वह उधर ही लुढ़कने लगा। अंत में चीता वहीं जल कर मर गया और लोमड़ी उसे आराम से खा गई।

स्रोत :
  • पुस्तक : बस्तर की लोक कथाएँ (पृष्ठ 3)
  • संपादक : लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2013

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