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उसकी महिमा वह जाने

uski mahima wo jane

बहुत समय पहले की बात है। भीमपुरी राज्य में बोम्मन नाम का राजा राज्य करता था। उसके मंत्री का नाम था सिम्मन। सिम्मन अपने राजा बोम्मन को तरह-तरह की सलाहें दिया करता था किंतु राजा बोम्मन अपने मंत्री की सलाहों पर कभी ध्यान नहीं देता था। राजा बोम्मन एक कुशासी शासक था। उसका मानना था कि ईश्वर ने उसे सर्वशक्तिमान बनाया है और उसके मुख से निकले हुए वचन ही न्याय का पर्याय हैं।

अपने राजा के विपरीत मंत्री सिम्मन ईश्वरीय शक्ति के प्रति आस्था रखने वाला तथा न्यायप्रिय व्यक्ति था। वह अक्सर कहा करता था कि उसकी महिमा वह जाने।

एक बार राजा बोम्मन की छोटी उँगली में एक फोड़ा हो गया। अनेक वैद्य बुलाए गए किंतु कोई भी राजा बोम्मन की उँगली का इलाज कर सका। अंततः राजवैद्य ने उँगली काट देने की सलाह दी।

‘महाराज यदि आपकी छोटी उँगली काटी नहीं गई तो घाव का विष पूरे शरीर में फैल जाएगा और इससे आपके प्राणों के लिए संकट उत्पन्न हो जाएगा।’ राजवैद्य ने कहा।

‘ठीक है। जैसा आप उचित समझें राजा बोम्मन ने अपनी छोटी उँगली काटे जाने की अनुमति दे दी।

उँगली काट दिए जाने के बाद राजा बोम्मन ने मंत्री सिम्मन से कहा कि अब उनका हाथ कुरूप हो गया है। ऐसा उनके साथ नहीं होना चाहिए था। इस पर मंत्री सिम्पन ने ईश्वर का स्मरण करते हुए कहा, ‘उसकी महिमा वह जाने।’

मंत्री सिम्मन के मुख से यह उद्गार सुनकर राजा बोम्मन को बहुत क्रोध आया और उसने मन ही मन निश्चय किया कि मंत्री सिम्मन को सहानुभुति जताने के बदले यह उद्गार प्रकट करने के लिए दंडित अवश्य करेगा। चूँकि मंत्री सिम्पन का कोई अपराध नहीं था अतः राजा बोम्मन उसे प्रत्यक्षतः दंड नहीं दे सकता था। अतः उसने एक योजना बनाई।

एक दिन राजा बोम्मन मंत्री सिम्मन तथा अन्य लोगों को साथ लेकर आखेट के लिए निकला। दिन भर आखेट करने के बाद रात्रि विश्राम के लिए जंगल में डेरा डाला गया। रात्रि भोजन करने के बाद राजा बोम्मन मंत्री सिम्मन को लेकर टहलने चल पड़ा। एक खाई के पास जाकर राजा बोम्मन नीचे झाँकने लगा।

‘देखो तो कितनी गहरी किंतु कितनी सुंदर खाई है।’ राजा बोम्मन ने कहा। फिर मंत्री सिम्मन से बोला, ‘तुम भी देखो।’

जैसे ही मंत्री सिम्मन खाई में झाँकने लगा वैसे ही राजा बोम्मन ने उसकी पीठ पर घक्का मारकर उसे खाई में धकेल दिया। मंत्री सिम्मन के खाई में गिरते ही राजा बोम्मन व्यंग्य से चिल्लाकर बोला, ‘सिम्मन अब तुम उसी के पास जाकर उसकी महिमा उससे पूछना।’

इसके बाद राजा बोम्मन यह सोचता हुआ वापस अपने डेरे की ओर चल पड़ा कि डेरे में जाकर अन्य लोगों से कह दूँगा कि मंत्री सिम्मन अँधेरे में कहीं रास्ता भटक गया है। अभी राजा बोम्मन कुछ दूर ही गया था कि उस वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों ने उस पर हमला बोल दिया। वे राजा को पकड़कर अपने साथ ले गए। आदिवासियों के गाँव में उत्सव का वातावरण था। एक स्थान पर अलाव धधक रहा था तथा अलाव के चारों ओर आदिवासी स्त्री-पुरुष नाच-गा रहे थे। वे सभी राजा को देखकर प्रसन्नता के मारे चीखने-चिल्लाने लगे। इतने में आदिवासियों का पुजारी आगे आया और उसने राजा को बलिवेदी पर लिटाने का आदेश दिया। अब राजा डर के मारे थर-थर काँपने लगा। उसने पुजारी से विनती की कि उसे छोड़ दे। उसने पुजारी को अपना परिचय भी दिया लेकिन पुजारी राजा को नहीं जानता था और वह राजा का परिचय जानकर प्रभावित हुआ। राजा बोम्मन की बलि दिए जाने की पूरी तैयारी हो गई। पुजारी राजा की गरदन काटकर बलि देने के लिए राजा के निकट आया।

तभी पुजारी की दृष्टि राजा के हाथ की ऊँगलियों पर पड़ी। हाथ की छोटी उँगली कटी हुई थी। यह देखकर पुजारी ठिठक गया। उसने अपने आदमियों को राजा को छोड़ देने का आदेश दिया क्योंकि शारीरिक रूप से अपूर्ण मनुष्य की बलि नहीं दी जा सकती थी और राजा बोम्मन हाथ की छोटी उँगली कटी होने के कारण शारीरिक रूप से अपूर्ण था।

आदिवासियों ने राजा को मुक्त कर दिया और उसे जाने दिया। अपने डेरे की ओर लौटते हुए राजा को मंत्री सिम्मन का वह उद्गार याद आया जो उसने राजा की उँगली कट जाने पर व्यक्त किया था, ‘उसकी महिमा वह जाने!’ अब राजा बोम्मन को मंत्री सिम्मन के कथन का मर्म समझ में गया कि उसकी उँगली कटने के पीछे इस प्रकार उसके प्राण बचने का रहस्य छिपा हुआ था।

अब राजा बोम्मन को अपनी करनी पर पछतावा होने लगा कि उसने मंत्री की बात को समझे बिना उसे खाई से धक्का देकर मार डाला। राजा बोम्मन पछताते हुए दुखी मन से उस स्थान की ओर बढ़ चला जिधर खाई थी। खाई के निकट पहुँचकर राजा बोम्मन ने खाई में झाँककर देखा। यह देखकर राजा के हर्ष का ठिकाना रहा कि मंत्री सिम्मन धीरे-धीरे खाई से ऊपर आने का प्रयास कर कर रहा है। वस्तुतः जब राजा ने मंत्री को खाई में गिराया था तब मंत्री को एक पेड़ की डाल का सहारा मिल गया था और वह बीच में लटक कर रह गया था। फिर धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहा था। मंत्री को जीवित देखकर राजा बोम्मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तत्काल अपनी दुशाला खाई में लटका दी जिसे पकड़कर मंत्री सिम्मन खाई से निकल आया।

राजा बोम्मन ने मंत्री सिम्मन को पहले गले से लगाया और फिर उससे अपने किए की क्षमा माँगी।

‘महाराज! आप क्षमा क्यों माँग रहे हैं? आपने मुझे खाई में धकेला जिससे मैं आदिवासियों के हाथ में आने से बच गया। यदि वे हम दोनों को पकड़ ले जाते तो मुझे शारीरिक दृष्टि से पूर्ण पाकर मेरी बलि अवश्य चढ़ा देते। आपके द्वारा मुझे खाई में धकेला जाना भी ईश्वर द्वारा निर्धारित था। इसीलिए मैं कहता हूँ कि उसकी महिमा वह जाने!’ मंत्री सिम्मन ने राजा से कहा।

‘तुम ठीक कहते हो। ईश्वर सर्वशक्तिमान है और उसकी महिमा वही जान सकता है।’ राजा ने भी मंत्री सिम्मन का समर्थन किया।

इसके बाद दोनों अपने डेरे पर लौट आए। उस दिन के बाद से राजा भी घमंड त्याग कर ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास करने लगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 231)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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