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बकरी और बाघिन

bakri aur baghin

एक बकरी थी। वह गर्भवती थी। जब वह जंगल में चारा चर रही थी तो उस पर एक बाघिन की दृष्टि पड़ी। बाघिन भी गर्भवती थी। बाघिन ने बकरी को खाने का निश्चय किया और घात लगाने लगी। बकरी को समय रहते पता चल गया और वह भाग खड़ी हुई। बकरी गर्भवती होने के कारण अधिक दूर तक जा सकी और थककर एक गुफ़ा में छिपकर बैठ गई। बाघिन भी गर्भवती होने के कारण इतनी फुर्ती नहीं दिखा पाई कि पह छलाँग मारकर बकरी को पकड़ लेती। वह पीछा करती हुई गुफ़ा के दरवाज़े तक पहुँची। गुफ़ा का दरवाज़ा इतना छोटा था कि बाघिन उसमें नहीं घुस सकती थी। अत: वह वहीं बैठकर बकरी के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगी।

बकरी बाघिन के डर से कई दिनों तक बाहर नहीं निकली। इस बीच बाघिन ने शावक को जन्म दिया और उधर बकरी ने छौने को जन्म दिया। बकरी ने अपने छौने का नाम रखा खरकमुन। बकरी गुफ़ा के भीतर रहकर खरमुन का लालन-पालन करने लगी। जब बहुत दिन हो गए तो बाघिन को एक चाल सूझी। उसने मीठी आवाज़ में बकरी से कहा, ‘बहन, तुम तो गुफ़ा में अपने बच्चे के साथ आराम से रहती हो लेकिन मैं यहाँ अकेली बाहर पड़ी रहती हूँ। मेरा शावक भी परेशान होता रहता है। अत: दो घड़ी के लिए या तो तुम बाहर जाओ या अपने छोने को भेज दो ताकि तनिक मन बहल जाए।’

बकरी बाघिन की चाल समझ गई। उसने खरकमुन को बाघिन की चाल के बारे में बताया। खरमुन ने कहा कि ‘माँ तुम चिंता मत करो। मैं सब सम्हाल लूँगा।’

रात को खरकमुन बाघिन का साथ देने जा पहुँचा। बाघिन ने सोचा कि जब खरकमुन सो जाएगा तब मैं इसे खाऊँगी। इसलिए उसने अपने शावक को अपनी पीठ की ओर सुलाया और खरकमुन को अपने मुँह की ओर। खरकमुन नींद का बहाना करके लेटा रहा। जब बाघिन की आँख झपकी तो उसने शावक को अपनी जगह सुला दिया और स्वयं शावक की जगह सो गया। थोड़ी देर में बाघिन की झपकी टूटी तो उसने लपककर बच्चे को मुँह में दबाया और एक ही बार में खा गई।

जल्दबाज़ी में उसे यह समझ में नहीं आया कि जिसे उसने खा लिया है वह खरकमुन है या उसका अपना शावक है।

जब भोर हुई तो खरकमुन ने बाघिन से विदा ली और एक झटके में गुफ़ा के भीतर चला गया। बाघिन ने खरकमुन को जीवित देखकर सोचा कि यदि खरकमुन जीवित है तो उसने रात को किसे खा लिया। उसने दृष्टि दौड़ाई तो अपना शावक कहीं दिखाई नहीं दिया। बाघिन समझ गई कि उसने अँधेरे में अपने शावक को खा लिया है। अपनी इस ग़लती का बाघिन को इतना पछतावा हुआ कि उसने एक खाई कूदकर अपनी जान दे दी। इसके बाद खरकमुन अपनी माँ के साथ गुफ़ा से बाहर निकला और माँ-बेटा अपने घर की ओर चल पड़े।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 337)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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