Font by Mehr Nastaliq Web

चीते का दत्तक पुत्र

chite ka dattak putr

किसी गाँव में बूढ़े संतान विहीन पति-पत्नी रहते थे। वे बहुत ग़रीब थे। उनके पास एक अंगुल भी ज़मीन नहीं थी। वे रोज़ वन में जाते, कंदमूल खोदकर निकालते और खाते थे। बस, यही उनके जीने का सहारा था।

संयोग की बात कि बुढ़ापे में पत्नी के पाँव भारी हो गए। नौ महीने बाद जंगल में कंदमूल खोदते हुए उसने बच्चे को जन्म दिया। बुढ़िया ने बूढ़े को आवाज़ दी, “सुनते हो, बच्चा हुआ है। अब हम क्या करें?”

बूढ़े ने कहा, “घर में एक दाना भी नहीं है। कपड़े हैं और कुछ। हमें इसे पालेंगे कैसे?”

बुढ़िया ने कहा, “तो ठीक है, इसे यहीं छोड़ देते हैं। इसके भाग्य में लिखा होगा तो कोई इसे पाल लेगा।”

सो बच्चे को वहीं छोड़कर वे घर चले गए। बच्चे के रोने की आवाज़ सुनकर एक चीता वहाँ आया और उसे अपने घर ले गया। वह उसका अपने बच्चे की तरह पालन-पोषण करने लगा।

वह बड़ा हुआ तो चीते को उसके ब्याह की फ़िक़्र में एक दिन उसने लड़के से पूछा, “कहो तो तुम्हारे लिए एक लड़की ले आऊँ?”

लड़के ने कहा, “जो आपकी मर्ज़ी! अगर आप मेरी शादी करना चाहते हैं तो कोई लड़की ले आइए!”

चीता गया और किसी लड़की के उधर से गुज़रने का इंतज़ार करने लगा। आख़िर एक लड़की आई। चीता उसे उठाकर घर की तरफ़ चल दिया। रास्ते में वह अपने पर क़ाबू रख सका और उसका आधा कान खा गया। वह उसे लेकर घर पहुँचा और लड़के से कहा, “बेटे, मैं तुम्हारे लिए एक लड़की लाया हूँ। जाओ, एक नज़र देख लो!”

लड़के ने बाहर जाकर देखा, “अरे, इसका तो एक कान आधा ग़ायब है!” वह वापस चीते के पास गया और कहा, “पिताजी, मुझे आधे कान वाली लड़की नहीं चाहिए।”

एक-एक कर चीता कई लड़कियाँ लाया। पर किसी का वह हाथ खा जाता तो किसी का नाक तो किसी का कान। आख़िर एक दिन लड़के ने कहा, “पिताजी, मेरे लिए कोई अच्छी लड़की लाइए, पूरे शरीर वाली।”

सो चीता एक बार फिर गया। इस बार एक पूरी लड़की लाने के लिए। वह ऐसे घर में गया जहाँ शादी हो रही थी। वह फेरों के बीच में ही मंडप से दुलहन को उठा लाया। चीते को देखकर घराती-बराती सब भाग छूटे। इस बार चीते ने बहुत सावचेती बरती, दुलहन को सही-सलामत घर लाया और बेटे से उसका ब्याह कर दिया।

कुछ दिन पति-पत्नी बहुत सुख से रहे। एक रोज़ सब्ज़ी काटते हुए पत्नी की अंगुली कट गई। रिसते ख़ून को उसने पत्तियों से पोंछ दिया। ख़ून की गंध पाकर चीता उन पत्तियों के पास गया और उन्हें चाटा। सोचा, “अगर उनके ख़ून का स्वाद इतना अच्छा है तो उनका माँस कैसा होगा! मैं उन्हें खाऊँगा।”

हो सकता है यह सोचते हुए उसके मुँह से कुछ निकल गया हो या उसकी आँखों की रंगत ने चुग़ली खाई हो। जो हो, पति-पत्नी समझ गए कि चीते की नीयत में खोट है। वह उन्हें खाएगा। उसी रात को वे वहाँ से रफ़ूचक्कर हो गए। सुबह चीते ने देखा कि दोनों का कहीं पता नहीं है। उनके पाँवों के निशानों के सहारे वह उनके पीछे गया।

पति-पत्नी एक पेड़ पर बैठे थे और चीते की बाट जोह रहे थे। ज्यों ही चीता पेड़ के नीचे आया लड़का तलवार लिए हुए उस पर कूदा और उसका काम तमाम कर दिया।

फिर दोनों लड़की के गाँव गए। लड़के के सास-ससुर उन्हें देखकर बहुत ख़ुश हुए। उन्होंने तो सोचा था कि चीता लड़की को मारकर खा गया होगा। उस दिन से लड़का और उसकी पत्नी वहीं रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 145)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY