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मुँह में बगुला

munh mein bagula

एक पंडित कहीं जा रहा था कि उसे खाँसी आई और उसने ज़मीन पर थूका। अपने कफ में सफ़ेद पंख देखकर वह दंग रह गया। उसके कुछ समझ में नहीं आया कि उसके कफ में पंख कहाँ से आया। वह चिंतित हो गया। ज्यों-ज्यों वह इस पर सोचता उसकी चिंता बढ़ती जाती। घर पहुँचते ही उसने पत्नी से कहा, “एक बात ने मुझे परेशान कर रखा है। पर यह बात तुम किसी से कहोगी तो नहीं?”

“मैं क्यों कहने लगी भला! किसी से नहीं कहूँगी, क़सम से!” तब पति ने उसे अपने कफ के सफ़ेद पंख के बारे में बताया।

पर पंडिताइन बात को पचा सकी। उसका पेट फूलने लगा। पड़ोसन को देखते ही उसे कहना पड़ा, “सुनो, कैसी अजीब बात है...पर पहले तुम क़सम खाओ कि किसी से कहोगी नहीं! मैंने पति से वादा किया है कि यह बात मैं किसी को नहीं बताऊँगी।”

“क़सम से, किसी से नहीं कहूँगी। इधर की बात उधर कहने की मेरी आदत नहीं है, हाँ!”

“पक्की बात? किसी से कहोगी तो नहीं न?”

“तुम्हें भरोसा नहीं है तो रहने दो! मैंने तुम्हारी कौन-सी बात किसी से कही है, बोलो तो?”

पंडिताइन ने कहा, “ठीक है, बताती हूँ। तुम तो मेरी ख़ास सहेली हो। आज है न, वो घर रहे थे तो जानती हो उनके कफ में क्या निकला? उनके कफ से बगुले के पंख निकले, बहुत सारे! राम जाने उन्हें क्या हो गया है! मुझे बड़ी चिंता हो रही है।”

“अरी, इसमें चिंता की क्या बात है! ऐसा हो जाता है और फिर ठीक भी हो जाता है। यह बात और किसी से मत कहना। लोग बात का बतंगड़ बना देते हैं।”

पर स्वयं पड़ोसन से रहा गया। घर आते ही वह इधर-उधर देखने लगी। यह बात किसी से नहीं कही तो उसका पेट फट जाएगा। एक सहेली के दिखते ही उसने बात उगल दी।

“पहले वादा करो कि किसी से कहोगी नहीं! मैंने पंडिताइन को वचन दिया है कि उसका राज़ मैं किसी को नहीं बताऊँगी। मालूम है आज क्या हुआ? पंडित को है न, आज मैदान में खाँसी आई तो उसके मुँह से पूरा बगुला निकला। मैं तो सोचती थी पंडित शाकाहारी होते हैं, पर देखो तो!”

सहेली को भरोसा नहीं हुआ, “पूरा बगुला? बगुला तो काफ़ी बड़ा होता है। खाया कैसे होगा अजब आदमी है! पर मैं किसी से नहीं कहूँगी, पतियारा रखो!”

इसके कुछ ही देर बाद एक और पड़ोसन से सुना कि पंडित के मुँह से फड़फड़ाते हुए कई बगुले निकले। साँझ होते-होते पूरे गाँव में ख़बर फैल गई कि पंडित के मुँह से झुँड के झुँड बगुले, सारस, क्रौंच और भी कई बड़े-बड़े पखेरू निकलते हैं। आस-पास के गाँवों में भी ख़बर फैल गई। जिसके पास बैलगाड़ियाँ थीं उन्होंने बैलगाड़ियाँ जोती और जिनके पास नहीं थीं वे पैदल ही पंडित के गाँव की ओर यह विकट चमत्कार देखने के लिए चल पड़े। अफ़वाह यहाँ तक फैली कि सभी रंग और आकार के पक्षी, यहाँ तक कि दूर देशों के पक्षी भी पंडित के मुँह से निकल रहे हैं। झुँड के झुँड पक्षी निकलने से आकाश भर गया है। जिसके कारण अँधेरा छा गया है। बेचारा पंडित पागल होते-होते बचा। वह भागकर एक पेड़ पर छुप गया और तब तक नीचे नहीं आया जब तक बात पुरानी नहीं पड़ गई और उसकी जगह दूसरी अफ़वाह नहीं फैल गई।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 133)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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