Font by Mehr Nastaliq Web

भैंस के बदले मुर्ग़ा

bhains ke badle murgha

पाटिल ग़रीब आदमी था, पर उसकी पत्नी उसे बहुत चाहती थी। उनके पास दो भैंसें थीं। उम्र के साथ-साथ उनकी ग़रीबी भी बढ़ती गई। एक दिन पाटिल की पत्नी ने उससे कहा, “एक भैंस को हाट में बेच दें तो कैसा रहे? हाथ में कुछ पैसा जाएगा।”

अगले दिन सुबह पाटिल पास के गाँव की हाट में भैंस बेचने के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसे एक आदमी मिला जो अपना घोड़ा बेचने के लिए उसी हाट में जा रहा था। पाटिल ने उसे बताया कि वह अपनी भैंस बेचने जा रहा है। उस आदमी ने भैंस को एक नज़र देखा। बोला, “इसके लिए इतनी दूर जाने की क्या ज़रूरत है? भैंस मुझे दे दो और मेरा घोड़ा ले लो।”

पाटिल ने सोचा, “ठीक तो है! घोड़े की सार-संभाल में कम झंझट है। बच्चे सवारी भी कर सकेंगे।” सो उसने घोड़े से भैंस की अदला-बदली कर ली।

घोड़े पर बैठकर वह उसे हाट की ओर ले जाने लगा तो उसे पता चला कि घोड़ा अंधा है। थोड़ा आगे उसे एक आदमी मिला जिसके पास एक गाय थी।

“बाबा, घोड़े को लेकर कहाँ जा रहे हो?”

“मैं अपनी बूढ़ी भैंस को बेचने हाट जा रहा था, पर मैंने घोड़े से उसकी अदला-बदली कर ली। लेकिन यह अंधा है।”

“मेरी गाय बहुत सीधी है। ख़ूब दूध देती है। चाहो तो यह ले लो और मुझे घोड़ा दे दो। मुझे घोड़े की ज़रूरत भी है।”

पाटिल को गाय देखने-भालने में अच्छी लगी। गाय की देखभाल घोड़े से आसान है। वह अदला-बदली के लिए राज़ी हो गया। पर यह पता चलने में उसे अधिक देर नहीं लगी कि गाय एक पाँव से लंगड़ी है।

थोड़ी देर बाद उसे बकरी को ले जाता एक आदमी मिला। उसने पाटिल से पूछा कि वह कहाँ जा रहा है तो उसने कहा, “मैं हाट में भैंस बेचने जा रहा था। रास्ते में मैंने उसे अंधे घोड़े से बदल लिया। उस घोड़े के बदले अब मेरे पास यह लंगड़ी गाय है। मुझे इसे बेचना होगा।”

“बेचने की क्या ज़रूरत है? मुझे गाय चाहिए। तुम मेरी बकरी ले लो और गाय मुझे दे दो।” उस आदमी ने कहा।

पाटिल ने बकरी को हाँका तो उसने देखा कि वह बीमार है। वह हाट में पहुँचा तो उसने बगल में मुर्ग़ा दबाए एक आदमी को देखा। पाटिल ने उसे बकरी देकर मुर्ग़ा ले लिया।

अब तक दोपहर हो गई थी। पाटिल के पेट में चूहे कूदने लगे। पर उसकी अंटी में एक भी पैसा नहीं था। सो उसने एक रुपए में मुर्ग़े को हाट में बेच दिया। उस रुपए से उसने खाना ख़रीदा और तालाब में हाथ-मुँह धोकर पीपल के नीचे खाने बैठा। उसने पहला कौर तोड़ा और उसे मुँह में डालने जा ही जा रहा था कि जाने कहाँ से लीर-लीर कपड़े पहने एक भिखारी आया और बोला, “कई दिनों से मैंने एक दाना भी नहीं खाया। एक रोटी दे दो। बड़ी दया होगी।” पाटिल पसीज गया। भिखारी भूखा रहे और वह ठूँस-ठूँसकर खाए यह उससे नहीं होगा। उसने खाने की पूरी पत्तल भिखारी को दे दी और घर लौट आया।

उसकी पत्नी उसकी राह देख रही थी। वह घर पहुँचा तब तक पत्नी बच्चों को खिला-पिलाकर फारिग हो गई थी। उसने पति से पूछा, “हो आए? भैंस कितने में बिकी? क्या बात है, तुम्हारा मुँह क्यों उतरा हुआ है?”

पाटिल ने कहा, “बताता हूँ, ज़रा दम तो लेने दो!”

पत्नी ने उसे पानी पिलाया। पानी पीकर पाटिल ने कहना शुरू किया, “मैंने भैंस को बेचा नहीं। उसके बदले एक घोड़ा ले लिया।”

“अच्छा किया। कहाँ है वह? बच्चो, देखो, तुम्हारे बापू घोड़ा लाए हैं।”

“ठहरो! घोड़ा नहीं है। उसके बदले मैंने गाय ले ली।”

“यह तो और भी अच्छा है। कब से मेरी गाय की साध थी। बच्चों की गाय बच्चो, बाहर जाकर देखो, तुम्हारे बापू गाय लाए हैं।”

“ठहरो, ठहरो! मैं गाय घर लाना चाहता था, पर उसके बदले मैंने बकरी ले ली।”

“बकरी तो और भी अच्छी है। बकरी का दूध बच्चों के लिए अमृत है और उसकी कुछ देखभाल भी नहीं करनी पड़ती। वह आप ही चर आती है। बच्चो, देखो तो सही, नई बकरी कैसी है!”

“पहले पूरी बात तो सुनो! बकरी के बदले मैंने एक मुर्ग़ा ले लिया।” बेचारे पाटिल ने कहा।

“ठीक किया। तड़के वह हमें जगा दिया करेगा। कहाँ है वह? चलो, सब चलकर देखते हैं”, पत्नी ने उत्सुकता से कहा।

“थोड़ा धीरज रखो! मुर्ग़ा मैं नहीं लाया। मुझे ज़ोरों की भूख लगी, सो मैंने मुर्ग़ा एक रुपए में बेच दिया और कुछ खाने को ख़रीद लिया।”

भली पत्नी ने कहा, “कोई बात नहीं। मुर्ग़े का हम क्या करते? अच्छा किया जो तुम भूखे नहीं रहे। इतनी मेहनत के बाद तुम्हें भूखा रहना भी नहीं चाहिए था!”

“मेहरबानी करके पहले पूरी बात तो सुनो! मैं खाना शुरू करने वाला ही था कि एक भिखारी आया। बोला कि वह कई दिनों से भूखा है। सो मैंने सारा खाना उसे दे दिया और घर गया।

“और तुमने कुछ नहीं खाया? च्च-च्च! पर तुमने ठीक किया। खाते समय भिखारी को लौटाया भी तो नहीं जाता! चलो, हाथ-मुँह धो लो, मैं खाने को लाती हूँ,” पत्नी ने कहा और उसे खाना परोसा।

अगले दिन सुबह पाटिल उठा और झोंपड़ी का दरवाज़ा खोला तो उसने जो देखा उससे वह दंग रह गया। उसने पत्नी को आवाज़ दी। उसके दरवाज़े के आगे कई जानवर खड़े थे। एक भैंस जो बूढ़ी नहीं थी। एक घोड़ा जो अंधा नहीं था। एक गाय जो लंगड़ी नहीं थी। एक बकरी जो मोटी-ताज़ी और स्वस्थ थी और एक कलगी वाला शानदार मुर्ग़ा। साथ ही एक पत्तल जिस पर चमचमाता हुआ एक रुपया रखा था। पाटिल की घरवाली ने श्रद्धामय विस्मय से कहा, “इन्हें यहाँ कौन लाया? वह भिखारी तो नहीं जिसे कल तुमने खाना खिलाया था?”

पाटिल ने कहा, “हाँ, वह भिखारी! ज़रूर वह भगवान होगा! हाँ, ज़रूर ही!”

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत
  • संस्करण : 2001

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY