मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार में एक हिंदू राजा था—बीरबल। वह अकबर का मुसाहिब भी था और सलाहकार भी। बीरबल की हाज़िरजवाबी और बुद्धिमानी के बहुत क़िस्से प्रचलित हैं। कुछेक क़िस्से उसके बेवक़ूफ़ी के भी सुनने में आते हैं।
बेहतरीन फूल
एक दिन अकबर ने अपने दरबारियों से पूछा, “आप लोगों की राय में बेहतरीन फूल कौन-सा है?”
कोई जवाब न दे सका।
आख़िर बीरबल की बारी आई। उसने कहा, “बेहतरीन फूल वह है जो सारी दुनिया का तन ढकता है।”
उसके जवाब से अकबर बहुत ख़ुश हुआ।
इसे छोटा बनाओ
एक दिन अकबर ने अपनी शाही हाथ से दरबार के फ़र्श पर एक लकीर खींची और हुक्म दिया, “इस लकीर को छोटा बनाओ! लेकिन ख़याल रहे इसके किसी हिस्से को मिटाना नहीं है।”
किसी के कुछ समझ में नहीं आया।
बीरबल की बारी आई तो उसने उस लकीर के पास उससे बड़ी लकीर खींच दी-पहली लकीर को उसने छुआ भी नहीं।
सबने उसकी ताईद की, “सच, पहली लकीर छोटी है।”
चार और एक
एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा, “चार आदमियों को मेरे सामने पेश करो जिन में एक शर्मीला हो, दूसरा बेशर्म, तीसरा डरपोक और चौथा बहादुर।”
अगले दिन बीरबल ने एक औरत को बादशाह की हुज़ूरी में पेश किया। अकबर ने कहा, “मैंने तुमसे चार लोगों के लिए कहा था। बाक़ी तीन कहाँ हैं?”
बीरबल ने कहा, “औरत पूरी दुनिया को पनाह देती है। इसमें चारों की ख़ूबियाँ मौजूद हैं।”
अकबर ने पूछा, “वह कैसे?”
बीरबल ने जवाब दिया, “औरत जब ससुराल में होती है तो हया के मारे मुँह भी नहीं खोलती। लेकिन जब वह शादी के मौक़े पर गालियाँ गाती है तो चाहे भाई, पिता, पति, सास, ससुर रिश्तेदार सब सुन रहे हों वह बिलकुल शर्म नहीं करती। औरत अपने खसम के साथ होती है तो रात को अकेली कोठार में भी नहीं जाती। कहती है, “मुझे डर लगता है।” लेकिन अपने महबूब से मिलने के लिए आधी रात के अँधेरे में भी वह बेख़ौफ़ अकेली चली जाती है। तब वह जिन्न और लुटेरों से भी नहीं डरती।”
अकबर ने कहा, “तुम ठीक कहते हो।” और उसे ढेरों इनाम दिए।
साले
एक दिन अकबर और बीरबल शिकार के लिए गए। एक टेढ़े पेड़ की ओर इशारा करके अकबर ने बीरबल से पूछा, “यह दरख़्त टेढ़ा क्यों है?” बीरबल ने जवाब दिया, “यह इसलिए टेढ़ा है क्योंकि यह जंगल के तमाम दरख़्तों का साला है।” “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?” बीरबल ने कहा, “मसल मशहूर है कि कुत्ते की पूँछ और साले हमेशा टेढ़े होते हैं।” अकबर ने पूछा, “क्या मेरा साला भी टेढ़ा है?” बीरबल ने फ़ौरन कहा,
“बेशक जहांपनाह!” अकबर ने कहा, “तो उसे फांसी पर चढ़ा दो!”
कुछ दिन बाद बीरबल ने फाँसी लगाने की तीन टिकठियाँ बनवाई—एक सोने की, एक चाँदी की और लोहे की। उन्हें देखकर अकबर ने पूछा, “तीन टिकठियाँ किसलिए?”
बीरबल ने कहा, “ग़रीब नवाज, एक आपके लिए, एक मेरे लिए और एक हुज़ूर के साले साहिब के लिए।”
अकबर को अचरज हुआ, “मुझे और तुम्हें फाँसी किसलिए?”
बीरबल ने कहा, “क्योंकि हम भी तो किसी के साले हैं।” अकबर हँस पड़ा, “तो फिर मेरे साले को भी छोड़ दो!
- पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 100)
- संपादक : ए. के. रामानुजन
- प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
- संस्करण : 2001
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