मैथिली लोकगीत : अहाँ क नजर दुनु छँहिया
maithili lokgit ha ahan k najar dunu chhanhiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—प्रियतम से वार्ता।
अहाँ क नजर दुनु छँहिया,
बलमु दुपहरिया गँवा लिउ हे।।1।।
चार महीना पिया जाड़ा रहइअ,
थर थर काँपे करेजा, बलम।।2।।
चार महीना पिया गरमी रहइअ,
ठोपे-ठोपे चुए पसीना,
बलमु तनि बेनिया डोला दिउ हे।।3।।
चार महीना पिया बरषा रहइअ,
ठोपे ठोपे चुए मंदिरवा,
बलमु तनि बँगला छवा दिउ हे।।4।।
हे प्रियतम! मैं तुम्हारी दोनों नज़रों की छाँह में तनिक दोपहर तो बिता लूँ।।1।।
हे प्रियतम! चार महीने जाड़ा रहता है। उसमें मेरा कलेजा थर-थर काँपता
है।।2।।
हे प्रिय! चार महीने गर्मी रहती है। ऐसे में बूँद-बूँद कर पसीना चूता है। ऐसे में तनिक पंखा डुला दो।।3।।
हे प्रिय! चार महीने वर्षा रहती है। मेरा घास-फूस का घर जगह-जगह चूने लगता है। ऐसी दशा में ज़रा एक बँगला तो बनवा दो।।4।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 51)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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