भोजपुरी लोकगीत : जहिया से अइली पिया तहरी महलिया में

bhojapuri lokgit ha jahiya se aili piya tahri mahaliya mein

रोचक तथ्य

संदर्भ—एक स्त्री का अपने पति से निवेदन।

जहिया से अइली पिया तहरी महलिया में,

राति दिन कइली टहलिया हे राम।।1।।

घर के करत काम सूखल देही के चाम,

सुखवा सापानावा हो गइले हे राम।।2।।

तोहरे इरीखवा से जाइबि नइहरवा में,

भउजी के लरिका खेलाइबि हे राम।।3।।

चिपरी के पाथि पाथि दिन हम काटबि,

अब नाहिं आइबि तोर दुअरिया हे राम।।4।।

हे प्रियतम! जबसे मैं तुम्हारे घर में आई हूँ, तब से मैं रात-दिन काम कर रही हूँ।।1।।

घर का काम करते-करते मेरे शरीर का चमड़ा सूख गया है और सुख स्वप्न हो गया है।।2।।

मैं तुम्हारी ईर्ष्या के कारण अपने नैहर चली जाऊँगी और वहाँ अपनी भाभी के लड़के खेलाऊँगी।।3।।

मैं नैहर में उपले पाथ-पाथ कर अपने दिन काटूँगी और अब मैं तुम्हारे दरवाज़े पर नहीं आऊँगी।।4।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 118)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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