भोजपुरी लोकगीत : होइ गइले कंगाल हो, बिदेसी तोरे रजवा में

bhojapuri lokgit ha hoi gaile kangal ho, bidesi tore rajwa mein

रोचक तथ्य

संदर्भ—विदेशी शासन की आलोचना।

होइ गइले कंगाल हो, बिदेसी तोरे रजवा में।।टेक।।

सोनवा के थाली जहाँ जेवना जेंवत रहली।

कठवा के डोकिया के होइ गइल मुहाल हो।।। बिदेसी०

भारत के लोग आज दाना बिना तरसैं भइया।

लन्दन के कुत्ता उड़ावे माजा माल हो।।2।। बिदेसी०

आवे असोक चन्द्रगुप्त हमरे देसवा में।

लोरवा बहावे देखि यह हवाल हो।।3।।बिदेसी०

हे विदेशी! तेरे राज्य में भारत देश कंगाल हो गया। जहाँ हम सोने की थाली में भोजन करते थे, वहाँ अब काठ के कटोरे भी दुर्लभ हो गए।।1।।

भारत के लोग आज अन्न के लिए तरस रहे हैं, वहाँ लंदन के कुत्ते माल उड़ा रहे हैं।।2।।

यदि अशोक और चंद्रगुप्त पुनः हमारे देश में आएँ तो यह दशा देखकर आँसू बहाएँगे।।3।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 131)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए