'अमर प्रेमकथा' प्रस्तुत उपन्यास में आराम से देव की अनुपस्थिति में अमर-सरि की प्रेम-वार्ताएँ है तो वैचारिक मुठभेड़ें भी हैं, परस्पर लगाव टकराव भी हैं, बनते वीगड़ते समीकरण भी हैं तथा कुछ सामाजिक सरोकार भी हैं, धार्मिक संदर्भ भी हैं तथा आश्रम के किनारे तचस्थ सी बहती गंगा है-मनुष्य मन की पावनता और मलिनता का विरोधाभासी प्रतीक प्रवाह बना-निरंतर बहती हुई गंगा।