ज्यों मोदाद समसान शिल
jyon modaad samshaan shil
ज्यों मोदाद समसान शिल, सबै रूप समसान।
कहहिं कबीर वह सावज की गति, तबकी देखि भुकान॥
जैसे स्वच्छ कांच के समान स्फटिक पत्थर होता है जिसे प्राप्त रंग के अनुसार प्रतीत होने के नाते समसान शिला भी कहते हैं, वह सभी रूपों एवं रंगों को ग्रहण करता है, वैसे मनुष्य का मन है। यह प्राप्त वृत्तियों के रंग में रंगकर उस-उस के अनुसार बन जाता है। सद्गुरु कहते हैं कि जैसे कुत्ता शीशमहल में अपने प्रतिबिंब देखकर और उन्हें अपना प्रतिद्वंदी मानकर उन्हें परास्त करने के लिए भूंक-भूंककर मरता है, वैसे मनुष्य भ्रमवश अपनी ही भावनाओं को सबमें प्रतिबिंबित करके राग-द्वेष में भूंक-भूंककर मरता है।
- पुस्तक : बीजक: पारख प्रबोधिनी व्याख्या (पृष्ठ 400)
- संपादक : अभिलाष दास
- रचनाकार : कबीर
- प्रकाशन : कबीर पारख संस्थान
- संस्करण : 1969
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