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जौ वाके तन की दसा

jau wake tan ki dasa

बिहारी

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जौ वाके तन की दसा

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और अधिकबिहारी

    जौ वाके तन की दसा, देख्यौ चाहत आपु।

    तौ बलि, नैंक बिलोकियै, चलि अचकाँ, चुपचापु॥

    सखी नायक से कहती है कि आपके विरह में उसकी क्या दशा हो गई है, वह आपके विरह में कितनी लीन हो गई है। यदि आप उसे देखना चाहते हैं, तो मैं आप पर बलिहारी जाती हूँ, आप अभी अचानक बिना सूचना दिए ही उसे चलकर देखिए तब आपको स्वयं महसूस हो जाएगा कि वह आपके विरह में किस प्रकार क्षीणकाय हो गई है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बिहारी सतसई (पृष्ठ 254)
    • संपादक : हरिचरण शर्मा
    • रचनाकार : बिहारी
    • प्रकाशन : श्याम प्रकाशन, जयपुर
    • संस्करण : 2007

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