अपराध
रात के ख़ौफ़नाक अँधेरे को चीरते हुए मेरी ट्रेन भागती जा रही है। एक अँधेरी सुरंग है कि मेरे समूचे अस्तित्व को निगलती जा रही है। यूँ मैंने सारी खिड़कियाँ बंद कर ली हैं, फिर भी एक शोर है कि जिस्म के पुर्ज़े-पुर्ज़े धमक रहे हैं, यादों का एक क़ाफ़िला है कि